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संकलन >> अज्ञेय रचनावली खंड-5 (नदी के द्वीप, अपने अपने अजनबी)

अज्ञेय रचनावली खंड-5 (नदी के द्वीप, अपने अपने अजनबी)

सम्पा. कृष्णदत्त पालीवाल

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :398
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10455
आईएसबीएन :9788126320912

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अज्ञेय एक ऐसे विलक्षण और विदग्ध रचनाकार हैं, जिन्होंने भारतीय भाषा और साहित्य को भारतीय आधुनिकता और प्रयोगधर्मिता से सम्पन्न किया है; तथा

अज्ञेय एक ऐसे विलक्षण और विदग्ध रचनाकार हैं, जिन्होंने भारतीय भाषा और साहित्य को भारतीय आधुनिकता और प्रयोगधर्मिता से सम्पन्न किया है; तथा बीसवीं सदी की मूलभूत अवधारणा 'स्वतन्त्रता' को अपने सृजन और चिन्तन में केन्द्रीय स्थान दिया है. उनकी यह भारतीय आधुनिकता उन्हें न सिर्फ़ हिन्दी, बल्कि समूचे भारतीय साहित्य का एक 'क्लासिक' बनाती है. 'अज्ञेय रचनावली' अठारह खंडों में नियोजित है. इनमें अज्ञेय का तमाम क्षेत्रों में किया गया विपुल लेखन पहली बार एक जगह समग्र रूप से संकलित है. अज्ञेय जन्मशताब्दी के इस ऐतिहासिक अवसर पर हिन्दी के मर्मज्ञ और प्रसिद्ध आलोचक प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल के सम्पादन में यह कार्य विधिवत सम्पन्न हुआ.

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