लोगों की राय

जैन साहित्य >> पउमचरिउ (पद्मचरित) (अपभ्रंश, हिन्दी) भाग 3

पउमचरिउ (पद्मचरित) (अपभ्रंश, हिन्दी) भाग 3

महाकवि स्वयम्भू

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :254
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10535
आईएसबीएन :0000000000000

Like this Hindi book 0

राम का एक नाम पद्म भी था. जैन कृतिकारों को यही नाम सर्वाधिक प्रिय लगा. इसलिए इसी नाम को आधार बनाकर प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश में काव्यग्रन्थों की रचना की गई.

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined offset: 1

Filename: books/book_info.php

Line Number: 553

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book