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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?

    एक ऐसे भ्रष्ट परिवार की कहानी,
    बेवफाई जिसमें रुटीन लाइफ स्टाइल की तरह स्थापित थी,
    जिसके मुखिया का घर की नौजवान
    मेड से रेगुलर अफेयर था
    और जो अविवाहित साली पर लार टपकाता था,
    जिसकी बीवी जनाना नवाजिशों का
    ऐसा बहता दरिया थी जिसमें कोई भी डुबकी लगा
    सकता था और साली तो जैसे खूँटा तुड़ाई गाय थी
    जो किसी भी खेत में मुँह मार सकती थी।
    ऐसे रंगीन परिवार का मुखिया एक रात मौत
    का निवाला बन गया तो क्या बडी़ बात थी?

    'सुनील सीरीज का सनसनाता उपन्यास'

घर का भेदी

पहला दिन


अट्ठाइस सितम्बर : सोमवार


रात के पौने दस बजे थे।
 
सुनील यूथ क्लब में रमाकान्त के साथ क्लब के मेन हाल में एक कोने की टेवल पर मौजूद था। दोनों ही बड़े अच्छे मूड में थे इसलिये मदिरा और धूम्रपान का भरपूर आनन्द ले रहे थे। वैसे माहौल में, जैसा कि हमेशा ही होता था, तब भी रमाकान्त सुनील से दो पैग आगे था। सुनील के सामने उसका तीसरा, लगभग भरा हुआ, पैग मौजूद था जबकि रमाकान्त के हाथ में उसका पांचवां, तीन चौथाई खाली, पैग था।

“बल्ले, भई"-रमाकान्त तृप्तिपूर्ण भाव से होंठ चटकाता हुआ बोला- “मजा आ गया।"

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