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तीर्थों में तीर्थराज प्रयाग

श्री प्रकाश

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13337
आईएसबीएन :9788180315794

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प्रयाग की स्थापित महत्ता को पुनर्स्थापित करने का प्रयास है यह पुस्तक

इलाहाबाद मुगलों की नजर में अल्लाह द्वारा आबाद किया हुआ पवित्र नगर है। प्रयाग है, तीर्थ है, तीर्थराज है, प्रयागराज है।
इसकी प्राचीनता असन्दिग्ध है। इसकी पौराणिकता, इसका इतिहास गौरवशाली है। मन्दिरों की ऐसी शृंखला है यहाँ कि इसे मन्दिरों का नगर कहें तो अतिशयोक्ति न होगी।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में 1857 की क्रान्ति से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन तक में इसकी भागीदारी अति महत्त्वपूर्ण है। स्वतन्त्रता आन्दोलन में इस नगर और नेहरू परिवार की भागीदारी ने आनन्द भवन को तो राष्ट्रीय तीर्थ ही बना दिया। इन्दिरा गाँधी ने अपने इस पैतृक भवन को राष्ट्र को समर्पित भी कर दिया।
नगर में मन्दिर हैं, ऐतिहासिक स्थल हैं, राष्ट्रीयता के प्रतीक-स्थल हैं और सबसे बढ्‌कर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का पवित्र त्रिवेणी संगम है। प्रयाग की इस स्थापित महत्ता को पुनर्स्थापित करने का प्रयास है यह पुस्तक।

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