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यात्रा वृत्तांत >> यशपाल का यात्रा साहित्य और कथा नाटक

यशपाल का यात्रा साहित्य और कथा नाटक

यशपाल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1994
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13365
आईएसबीएन :0

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यशपाल एक व्यक्ति नहीं, आन्दोलन थे और ‘विप्लव’ इस आन्दोलन का उद्घोष।

बिचारों से मार्क्सवादी और स्वाधीनता आन्दोलन के दौर में क्रान्तिकारी, प्रसिद्ध कथाकार और विचारक यशपाल के 'लोहे की दीवार के दोनों ओर', 'राह बीती', 'स्वर्गों- सान : बिना सांप' यात्रा वर्णन और संस्मरण तथा 'नशे नशे की बात' कथानाटक इस खण्ड में संकलित हैं। वस्तुपरक आत्मपरकता इन यात्रा वर्णनों का प्रमुख गुण है। भारतीय संदर्भ की दृष्टि से लेखक ने विभिन्न देशों की जमीन, आबोहबा, तरक्की, सफाई, सुघड़ता और निजी विशेषताओं का वर्णन किया है। 'लोहे की दीवार के दोनों ओर' में करो के हवाई अड्‌डे से लेकर स्विट्‌जरलैंड, वियना, मास्को, जार्जिया, लन्दन आदि के विभिन्न स्थानों, संस्थानों, लेखक समितियों, १९५२८-२५३ के सोवियत रूस की आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक स्थितियों और मजदूरों की भागीदारी आदि का परिचयात्मक परन्तु आकर्षक वर्णन है। पूंजीवादी और समाजवादी देशों की जीवन प्रणाली और सांस्कृतिक अभिरुचि और मूल्यों की तत्कालीन स्थिति और एक भारतीय लेखक की प्रतिक्रिया की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है। सोवियत समाज में 'घर लौटने ''की चाह' को लेखक रेखांकित करना नहीं भूल सका है। 'राह बीती' में पूर्वी योरोप की यात्रा से प्राप्त अनुभवों और उनसे उत्पन्न विचारों का सृजनात्मक वर्णन है। रोम, प्राहा, सोची, काबुल, पूर्वी जर्मनी, बर्लिन, रोमानिया आदि देशों की बोली-बानी, परिस्थितियां, जातियों के स्वभाव आदि के साथ ही साथ पारस्परिक समानता और विषमता के सूत्रों की तलास और व्याख्या इन यात्रा वृत्तान्तों की अतिरिक्त विशेषता है। मनुष्य विभिन्नताओं के बावजुद कितना एक है और कितनी आश्चर्यजनक है उसकी जिजीविषा, संघर्ष करने और बदलने तथा बनाने की शक्ति, यह यशपाल के इन संस्मरणों में सर्वत्र व्याप्त है। पूर्वी जर्मनी के फिल्म लेखक पूजा और यशपाल के संवाद समाजवाद और पूंजीवाद के अंतर और विस्तार के प्रयत्नों को संकेतित करने के साथ ही साय अन्य अनेक प्रश्नों के उत्तरों की ओर भी संकेत करते हैं।
स्याही सुखाने के लिए रेत का प्रयोग ऐसा ही सांस्कृतिक संकेत है।
'स्वर्गोद्यान : बिना साँप' मारीशस की भौगोलिक और सांस्कृतिक स्थिति की सुन्दर अभिव्यक्ति है। मारीशस के अन्तर-सामाजिक और अन्तर-सांस्कृतिक सम्बन्धों की व्याख्या के साथ ही साथ लेखक ने मारीशस के मूल भारतीयों के नॉस्टेल्जिया, हिन्दी भाषानुराग और हिन्दी में सुजन की आकांक्षा को आत्मपरक दृष्टि से रेखांकित किया है। कोई अध्यापक मारीशस में फूहड़, मली-मसली, अधूरी पोशाक में न था जैसे टिप्पणी यशपाल की पसंदगी का भी प्रमाण है और वस्तुपरक स्थिति का भी। मारीशस के पशु- पक्षियों आदि का उल्लेख भी है और प्राकृतिक दृश्यों का प्रभावकारी वर्णन भी। काले कौवे, मोर और सांप बही नहीं हैं परन्तु उपनिवेशवादी प्रवृत्तियों के कुछ अंग्रेज किस प्रकार फूट डालकर सांप का कार्य करते हैं इसका उल्लेख यशपाल ने अपेक्षाकृत विस्तार से एक संवाद के भीतर किया है। 'धनवतिया' के घर के वर्णन से परिवार. की निजता, सुघड़ता और निष्ठा को व्यक्त करने के कारण यात्रा वर्णन एक प्रकार का संस्मरण बन गया है। इसमें संस्मरण और यात्रा वर्णन दोनों ही विधाओं का आनन्द है।
'नशे नशे की बात' मुख्यत: नाटकों के कथा रूपान्तर हैं। स्वयं लेखक के अनुसार 'ये तीन दृश्य कहानियाँ इस ढंग से लिखी गई हैं कि पढ़ने में दृश्य कहानी का प्रयोजन पूरा कर सकें और रुचि अथवा अवसर होने पर रंगमंच पर भी उतारी जा सकें'। 'नशे नशे की बात' और 'गुडबाई दर्द दिल' का तो अभिनय भी कई स्थानों पर हुआ है। इसमें सामाजिक विसंगतियों और पाखंड का उद्‌घाटन किया गया है। आध्यात्मिकता का नशा या प्रेम की एकांगिता, सामाजिक जिम्मेदारी और व्यापक हित की भावना के बगैर पाखंड है। इसका दृश्यों और संवादों से सम्प्रेषण ही लेखक का इन कथा नाटकों में उद्देश्य रहा है। यह खंड यशपाल की सारग्राही और व्यापक दृष्टि की पहचान का प्रमाण है।

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