लोगों की राय

संचयन >> यशपाल रचनावाली (1-14)

यशपाल रचनावाली (1-14)

यशपाल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13367
आईएसबीएन :8186235493

Like this Hindi book 0

यशपाल का सम्पूर्ण रचना संसार चौदह भागों में

भारत की स्वाधीनता के लिए प्राणों को हथेली पर रखकर चलने वाले, चन्द्र शेखर आजाद और भगत सिंह के साथी, क्रान्तिकारी यशपाल जी का शोषण मुक्त समाज और निजी स्वामित्व के खात्‍मे पर आजीवन अटल विश्वास रहा है। इस खंड में संकलित 'गांधीवाद की शव परीक्षा', 'रामराज्य की कथा', 'मार्क्सवाद', 'देखा सोचा समझा' और 'बीबी जी कहती हैं, मेरा चेहरा रोबीला है' में उनके इन विचारों की सतर्क और सजग झलक ही नहीं भारतीय समाज के भिन्न वर्गों और जातियों की गहरी समझ तथा दुनिया में हो रहे सामाजिक-आर्थिक और वैचारिक परिवर्तनों की ध्वनि प्रतिध्वनि निरंतर सुनाई देती है। 'गांधीवाद की शव परीक्षा' में शोषण में निरीहता, अहिंसा और दरिद्र-नारायण की सेवा आदि सिद्धांतों का मूल्यांकन करते हुए कहा गया है कि 'गांधीवाद जनता की मुक्ति, सामन्तकालीन घरेलू उद्योग-धंधों और स्वामी सेवक के सम्बन्ध की पुन: स्थापना में समझता है जो इतिहास की कब में दफन हो चुकी हैं मुर्दा व्यवस्थायें और आदर्श समाज को विकास की ओर ले जाने का काम नहीं कर सकते। उनका उपयोग, उन्हें समाप्त कर देने वाले कारणों को समझने के लिए या उनकी शव-परीक्षा के लिए ही हो सकता है। ' 'रामराज्य की कथा' में गांधी जी की 'रामराज्य' की कल्पना और उसके व्यावहारिक रूप के अध्ययने के साथ ही साथ रामराज्य के समता, न्याय और अहिंसा जैसे मूल्यों के माध्यम से जनता के शोषण की व्याख्या की गयी है। मार्क्सवाद में सेंट साइमन, ओवेन आदि संत साम्यवादियों के विचारों के साथ मार्क्स के विचारों और सिद्धान्तों की व्याख्या की गयी है तथा अन्य राजनैतिक सिद्धान्तों से उसके अंतर को स्पष्ट किया गया है। 'देखा सोचा समझा' में नैनीताल, कुल्लूमनाली आदि यात्रा वर्णनों के साथ-साथ समकालीन साहित्यिक और राजनैतिक गतिविधियों का विश्लेषण भी है। 'बीबी जी कहती हैं, मेरा चेहरा रोबीला है' में व्यंगात्मक निबंधों के माध्यम से भी हिंसा अहिंसा आदि के साथ अपने समय को परिभाषित करने का प्रयत्न मार्क्सवाद की दृष्टि से किया गया है। यशपाल के इन निबन्धों में उनके युग के राजनैतिक, सामाजिक और साहित्यिक सरोकारों से सम्बद्ध तेज बहसों और विवादों की झलक मिलती है। ये निबन्ध एक सर्जक की गहरी निष्ठा और व्यावहारिक समझ से विकसित हैं। दलित, शोषित और पीड़ित के प्रति गहरे लगाव के कारण वे गांधीवाद, मार्क्सवाद आदि सब कुछ को उन कारणों के परिवर्तन की दृष्टि से आँकते हैं जो गरीबी और शोषण के कारण हैं। इन निबन्धों में ऐतिहासिकता के साथ-साथ समकालीनता भी है। इन निबन्धों से यशपाल और उनके समय को समझने में मदद मिलती है। जो लोग इन्हें गांधीवाद और मार्क्सवाद की दृष्टि से पढ़ना चाहते हैं उन्हें भी आज के संदर्भ के कारण इनकी ताकतों और कमजोरियों का पता चलेगा क्योंकि इनमें प्रस्तुतीकरण ही नहीं विश्लेषण है। इन सबमें कसौटी शोषित वर्ग की भौतिक स्थितियाँ और उसके कारणों का बना रहना या बदलना ही है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book