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ग्रामीण विकास का आधार: आत्मनिर्भर पंचायतें

प्रतापमल देवपुरा

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :231
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13468
आईएसबीएन :818361051x

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पुस्तक में पंचायत की सफलता की कहानियाँ, कार्टून, चित्र, सारणियाँ एवं आरेखों के द्वारा विषय को रोचक बनाने का प्रयास किया गया है ताकि

संविधान में 73वें संशोधन के बाद यह उम्मीद की गई कि देश के 6 लाख गाँवों में पंचायती राज की स्थापना से गाँवों के कष्ट दूर होंगे। विकास की बहुत उम्मीदें भी लगाई गईं, आरक्षण से गाँवों के पिछड़ों, महिलाओं के लिए स्थान भी सुरक्षित किए गए, पर हुआ क्या ? क्या बिना साधनों के विकास सम्भव होगा ? पंचायतों को अधिकार एवं जिम्मेदारियाँ तो सौंप दी गईं परन्तु आवश्यक वित्त प्रबन्ध नहीं हुआ। यदि हुआ भी तो इतना कमजोर कि उससे दैनिक खर्चा भी नहीं निकल सकता है। ऐसे में पंचायतों के पास क्या विकल्प है? किन साधनों का कैसे विकास हो? इन्हीं सब मुद्दों पर इस पुस्तक में विचार किया गया है। इसमें यह बात प्रमुखता से उभरकर आती है कि आत्मनिर्भरता से ही विकास करना व गरीबी हटाना सम्भव होगा।
पुस्तक में पंचायत की सफलता की कहानियाँ, कार्टून, चित्र, सारणियाँ एवं आरेखों के द्वारा विषय को रोचक बनाने का प्रयास किया गया है ताकि ग्रामीण पृष्ठभूमि के कम पढ़े-लिखे पाठक भी इसे आसानी से पढ़ सकें और आत्मसात कर सकें।

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