लोगों की राय

उपन्यास >> मुर्दों का टीला

मुर्दों का टीला

रांगेय राघव

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :341
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13561
आईएसबीएन :9788171193042

Like this Hindi book 0

भारतीय उपमहाद्वीप की अल्पज्ञात आदि सभ्यता को लेकर लिखा गया यह अदितीय उपन्यास है

भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का इतिहास मोअन-जो-दड़ो के उत्खनन में मिली सिन्धु घटी की सभ्यता से शुरू होता है! इस सभ्यता का विकसित स्वरुप उस समय की ज्ञात किसी सभ्यता की तुलना में अधिक उन्नत है! प्रसिद्ध उपन्यासकार रांगेय राघव ने अपने इस उपन्यास 'मुर्दों का टीला' में उस आदि सभ्यता के संसार का सूक्ष्म चित्रण किया है! मोअन-जो-दड़ो सिन्धी शब्द है! उसका अर्थ है- मृतकों का स्थान अर्थात 'मुर्दों का टीला'! 'मुर्दों का टीला' शीर्षक इस उपन्यास में रांगेय राघव ने एक रचनाकार की दृष्टि से मोअन-जो-दड़ो का उत्खनन करने का प्रयास किया है! इतिहास की पुस्तकों में तो इस सभ्यता के बारे में महज तथ्यात्मक विवरण पते हैं! लेकिन रांगेय रचाव के इस उपन्यास के सहारे हम सिन्धु घटी सभ्यता के समाज की जीवित धड़कने सुनते हैं! सिन्धु घाटी सभ्यता का स्वरुप क्या था? उस समाज के लोगों की जीवन-व्यवस्था का स्वरुप क्या था? रीती-रिवाज कैसे थे? शासन-व्यवस्था का स्वरोप क्या था? इन प्रश्नों का इतिहास सम्मत उत्तर आप इस उपन्यास में पाएंगे! भारतीय उपमहाद्वीप की अल्पज्ञात आदि सभ्यता को लेकर लिखा गया यह अदितीय उपन्यास है! रांगेय राघव का यह उपन्यास प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति में प्रवेश का पहला दरवाजा है!

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book