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नारी विमर्श >> स्वाधीनता का स्त्री पक्ष

स्वाधीनता का स्त्री पक्ष

अनामिका

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14316
आईएसबीएन :9788126722914

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नई स्त्री शिक्षा-सम्बलित-सजग स्त्री है। उसके प्रेम का पात्र बन पाना, उसके टक्कर का पुरुष बन पाना इतना आसान भी नहीं।

नई स्त्री शिक्षा-सम्बलित-सजग स्त्री है। उसके प्रेम का पात्र बन पाना, उसके टक्कर का पुरुष बन पाना इतना आसान भी नहीं। स्त्रीवाद आप में उसके प्रेम के योग्य हो पाने की उमंग जगाता है। आत्मविकास का एक मौका देता है आपको। आत्मविश्वास की पहली सीढ़ी है आत्मनिरीक्षण। खौलते हुए पानी में चेहरा नहीं दिखता। अहंकार, क्रोध-लोभ या कामना एक विकट आँच है। इस आँच की सवारी मन को अदहन का पानी बना देती है: अन्तर्मन तो समझता है, लेकिन उसकी रिले-सर्विस जरा स्लो है, और उसका स्विच ‘ऑफ’ कर देने की सुविधा भी होती है, बाइबिल इसी अर्थ में तो कहती है - ‘सीइंग दे दोंट सी, हियरंग दे दोंट हियर।’ सब बड़ी विभूतियों, लगातार सबको खरी-खोटी सुनानेवाले आत्मग्रस्त विष्णुओं का यही हाल है, मूर्ख वे थोड़े हैं - पर उनका आत्मबल कम है: बुरा जो ढूँढ़न मैं चला, बुरा न मिल्या कोय, जो दिल ढूँढ़ा आपना, मुझसे बुरा न कोय। स्त्री आन्दोलन यही विनय, यही आत्मसाक्ष्य जगाना चाहता है। प्रत्याक्रमण में, प्रतिघात या प्रतिशोध में इसकी आस्था नहीं है, शान्त प्रतिरोध यह करता है, आपको मौका देता है कि आप अपने भीतर झाँकें और सचमुच महसूस करें कि चित्त के पितृसत्तात्मक दबावों से या आदतन आपसे ऐसा व्यवहार नहीं हो गया जो दूसरों से आप अपने लिए नहीं चाहते? एक गम्भीर संकल्प लें कि अब ऐसा बिलकुल नहीं होगा।

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