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श्रंगार-विलास >> देहदान सुखदान

देहदान सुखदान

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : साधना पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1996
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15329
आईएसबीएन :0

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मैं इस बात पर विचार करना चाहता हूं कि पुरुषों की परम भोग्य वस्तु स्त्री, वास्तव में क्या हैं ?

विषय-क्रम

1. स्त्री स्वातंत्र्य
2. देहदान का शाश्वत सुख
3. शिक्षित महिलाएं
4. स्त्री परिग्रह
5. नारी
6. नारी की श्रेष्ठता
7. गृहदीप स्त्री
8. पतिव्रत धर्म
9. लेख पर एक प्रतिक्रिया
10. प्रतिक्रिया का उत्तर
11. दूसरी प्रतिक्रियां
12. महिला की प्रतिक्रिया
13. उपसंहार
14. वैवाहिक संबंध
15.: विवाह के प्रकार
16. सुहागरात
17. संभोग में सावधानी
18. गलतफहमियों से बचना जरूरी
19. काम कलाओं के भेद
20. छेड़छाड़, हास-परिहास का महत्व
21. प्राक़ क्रीड़ा अर्थात् कामक्रीड़ा की सीमा
22. कलाम कलाओं की बारीकियां


देहदान का शाश्वत सुख

जिस अधीरता से पुरुषु स्त्रियों को घोलकर एक ही सांस में पी जाने को आतुर रहता है-वैसी बेसब्री से मनुष्य शायद ही कोई काम करता है। दरिद्र और मूर्ख, अमीर और गरीब, सज्जन और दुर्जन, प्रत्येक पुरुष इस विषय में प्रकट या गुप्त एक से ही पाये जाते हैं। बड़े-बड़े वीतरागी, धर्मात्मा और सत्पुरुषों को स्त्री के सम्बन्ध में घोर लालची और बेईमान पाया गया है। हर हालत में स्त्रियां पुरुषों की एक बड़ी प्यारी वाद्य सामग्री हैं। जो उनका भली प्रकार उपयोग कर सकता है, वह अपना इस लोक का जन्म, धन्य समझता है।

मैं चिकित्सक होने के कारण राजाओं तथा महाराजाओं के अन्तःपुर से लेकर दरिद्रों के झोंपड़े तक़ सदैव बेरोक-टोक जाता रहा हूं। बहुधा अत्यन्त गोपनीय भावों के विश्लेषण करने के नाजुक कार्य मेरे हाथों से गुजरे हैं। भिन्न-भिन्न रूप, रस और गन्ध के ताजे और बासी, सूखे और सड़े, कच्चे और पक्के स्त्री-पुरुष देखने में आये हैं।

पुरुष बहुत कम मेरे मित्र हैं, प्रायः नहीं हैं, पुरुषों को प्यार करने में मैं सदा भय खाता हूं। प्यार को सदा उनसे उसी तरह छिपा कर रखता हूं, जिस तरह धूप से फूल को रखते हैं। मैं इस बात पर विचार करना चाहता हूं कि पुरुषों की परम भोग्य वस्तु स्त्री, वास्तव में क्या हैं ?

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