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संस्मरण >> रचना का अंतरंग

रचना का अंतरंग

देवेन्द्र

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15840
आईएसबीएन :9788194272984

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अर्थशास्त्र जानने वाले कहते हैं कि गाँव की तरक्की हो गई है। समाजशास्त्र के विद्वान कहते हैं कि रिश्तों में दरार आ गई है। गाँव के लोग कहते हैं कि अब वह बात नहीं रहीं। बहुत उदास-उदास लगता है। यहाँ रहने का मन नहीं होता। लब्बोलुबाब यह कि इतनी उदास, मनहूस और क़र्ज़ में डूबी तरक्की। बैंकों की मदद से हमारे गाँव में तीन लोगों ने ट्रैक्टर ख़रीदे और तीनों के आधे खेत बिक गए। ट्रैक्टर औने-पौने दाम में बेचने पड़े। पता नहीं क़र्ज़ चुकता हुआ कि नहीं ? पंचायती राज में लोकतंत्र को गाँवों तक ले जाने का कार्यक्रम बना। फिर तो, अपहरण, हत्याएँ और मुकदमेबाज़ी। सारे के सारे गाँव थानों और कचहरियों में जाकर क़ानून की धाराएँ रटने लगे।…

— ‘अस्सी की एक शाम’ से

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