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मनोरंजक कथाएँ >> ईमानदार गड़ेरिया

ईमानदार गड़ेरिया

दिनेश चमोला

प्रकाशक : सावित्री प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2931
आईएसबीएन :00000

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गड़रिये की ईमानदारी से खुश होकर जल देवता उसे सोने और चाँदी की दो कुल्हड़ी भेंट में देते हैं......

Emandar Gaderiya-A Hindi Book by Dinesh Chamola

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

ईमानदार गड़ेरिया

किसी घने जंगल में एक गरीब गड़रिया रहता था। किन्तु वह मेहनती था। सूर्योंदय से पहले ही अपनी भेड़-बकरियों की लम्बी माँद बाँधे घर से निकल पड़ता। देर शाम तक ही घर लौटता। सावन के आते ही चरागाह हरे-भरे हो उठते। गड़रिया तीन चार महीनों के लिए जंगल में ही डेरा डाल देता। जिसे पयार कहते।

जब गड़रिया पयार से घर लौटता तो भेड़-बकरियों की संख्या डेढ़ गुनी हो जाती। ऐसे में सभी भेड़-बकरियों का रंग निखर जाता। कई भेड़-बकरियां बिक जातीं। साल-भर का खर्च चल जाता।

एक बार बकरियों को चराते-चराते गड़रिया कहीं दूर के जंगल में निकल गया। एक रात वह नीम के पेड़ के नीचे सोया था। भेड़-बकरियाँ एक दूसरे से सिमटकर बैठी थीं। लम्बे बालों वाला कुत्ता उनकी देखभाल कर रहा था। एकाएक नीम के पे़ड़ से एक आवाज सुनाई दी। उसे सुनकर गड़रिया जागा। वह डरा नहीं क्योंकि घने जंगल का तो वह आदी हो चुका था। आवाज फिर आई-

‘‘अरे श्रवण ! यहाँ से चले जाओ जंगल में महामारी फैल गयी है। तुम्हारी सभी भेड़-बकरियाँ इस चपेट में आकर मर जाएगी..... तुम शीघ्र ही यहाँ से चले जाओ ।’’
‘‘महाराज, आप कौन हो ! क्या आप मेरी रक्षा नहीं कर सकते ? मैं एक गरीब गड़रिया हूँ, ’’श्रवण ने साहस पूर्वक कहा।

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