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श्री श्री गणेश महिमा

महाश्वेता देवी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3774
आईएसबीएन :81-7119-533-4

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यह बिहार के एक गाँव की कहानी है, जो बीसवीं सदी में नहीं, अभी भी मध्ययुग के बीहड़ अँधेरों में जी रहा है...

Shri Shri Ganesh Mahima

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यह बिहार के एक गाँव की कहानी है, जो बीसवीं सदी में नहीं, अभी भी मध्ययुग के बीहड़ अँधेरों में जी रहा है और जहाँ आज भी भारत सरकार का नहीं, बल्कि ऊँची जाति के राजपूत मालिकों का प्रभुत्व चलता है। वही निरंकुश यह तय करते हैं कि नीची जातियों के मर्द-औरतों की भूमिका कब जरखरीद गुलाम, कब बँधुआ मजदूर, कब उजड़े किसान और कब रखैल की होगी। भूमि-अधिपति श्री श्री गणेश है इस बर्बर और हिंस्त्र व्यवस्था का निरंकुश शासक, जिसकी महिमा का बखान जन्म से लेकर उसके पिताश्री की रखैल और उसकी धाय माता लछिमा के हाथों मारे जाने तक बड़ी सशक्त शैली में किया गया है।

लेकिन फिलहाल हारी जाने वाली इस लड़ाई में शामिल लोगों की चित्र-वीथि में हैं हर जगह और हर युग में अत्याचारी के विरुद्ध चिनगारी फूँकने वालों की परंपरा में रांका दुसाध, गाँधीवादी अभय महतो, नक्सली जुगलकरन और बस्तियों से जंगलों में भागकर आयी अनाम भीड़। उपन्यास में हरेक की छवि बड़ी ही सहज और सशक्त रंगों में उभारी गयी है। मध्यम वर्ग की नयी पीढ़ी की यौवन पल्लवी शाह की बौनी सहानुभूति पर किया गया कटाक्ष इस उपन्यास के पाठक कभी भूल नहीं पाएँगे।

लेकिन बीहड़ अँधेरे में किरण है सरसतिया की आवाज, जो अपनी कोख से राँका दुसाध जैसी उद्धत संतान को टेर रही है, यही है इस उपन्यास में उपन्यासकार की आस्था का उद्घोष।

श्री श्री गणेश महिमा

एक

आज से चालीस वर्ष पहले मुँह में एक दाँत लिये त्रितीर्थ नारायण ने जन्म लिया था। बेशक, यह एक असाधारण घटना थी, पर इसका परिणाम अच्छा नहीं हुआ। वह बरसात की एक शाम थी और आसमान काले बादलों से भरा था। लगभग अँधेरे में प्रसूता ने अपनी क्षीण आवाज़ में जानना चाहा था कि उसे लड़का पैदा हुआ है या लड़की ?

उसकी यह उत्सुकता बड़ी स्वाभाविक थी। पति मेदिनी नारायण ज़री के फूलों से सुशोभित नागरा पहनकर आँगन में बेचैनी के साथ टहल रहे थे। जूते से चर्र-चर्र की आवाज़ आ रही थी। ‘‘अगर फिर लड़की जनी तो भगा दूँगा।’’ वह अत्यंत भयभीत थी। भगा देने पर वह कहाँ जायेगी ? वह फ़र्श पर चटाई बिछाकर गुदड़ी के ऊपर लेटी थी। दोनों सौतें गिद्ध की तरह दरवाजे पर बैठी थीं। वे भी बिटिया की माँ थीं, सोच रही थीं कि अगर छोटी को लड़का पैदा हो गया तो उनकी हालत और भी संगीन हो जाएगी। प्रसूता अपने को काफ़ी बेसहारा महसूस कर रही थी।
‘‘लड़का या लड़की ?’’ दाई से उसने उत्कंठापूर्वक पूछा।
‘‘लड़का।’’

‘‘देखूँ’’, काफ़ी कष्ट से प्रसूता ने करवट बदली। रोते बच्चे के खुले मुँह में एक नुकीला दाँत देखकर प्रसूता के गले से आतंक-का स्वर फूटा और वह बेहोश हो गयी। फिर उसे होश नहीं आया। अगर जीवित रहती  तो लड़के में और भी असाधारण बातें देख सकती थी। गला और कान के बीच मस्सों का गुच्छा, पैर का अँगूठा बेहद लम्बा। फिर भी बच्चा हृष्ट-पुष्ट था।
जब माँ बेहोश हुई तब आसमान में बड़ी तेज़ बिजली चमकी थी तथा गाज भी गिरी थी। फलस्वरूप एक क्षण में ख़बर फैल गयी है कि सती की देह-ज्योंति बिजली में विलीन हो गयी। बेटा ही पैदा हो, इसके लिए इतना जप-तप किया, तीन तीर्थों का पानी पिया और इसके बाद एक असाधारण पुत्र को जन्म देकर माँ स्वर्ग सिधार गयी। बाढ़ा-नवागढ़ में ऐसी कहानियाँ बहुत जल्द फैल जाती हैं। सुबह आँगन में भीड़ उमड़ पड़ी। मेदिनी  नारायण सर मुड़ाकर शव के साथ गये।
दाह-संस्कार के बाद मेदिनी नारायण ने दाई को बुलवाया। दायी का काम करती है गुलाल। नाम काफ़ी रंगीन होने के बावजूद वह एक हद तक पुरुषों जैसे स्वभाव वाली महिला है। एक के बाद एक मेदिनी   नारायण की शादियों की विफलता पर उसके दिल में मेदिनी के लिए सहानुभूति भी है और इसी कारण उसने मेदिनी नारायण के लिए गदराये बदन वाली अपनी समर्थ नतिनी का जुगाड़ किया था।

मेदिनी ने उससे कहा, ‘‘लड़के को पालना होगा। बड़की और मझली पर मुझे भरोसा नहीं है।’’
‘‘नहीं, नहीं, वे उसे मार डालेंगी।’’
‘‘छोटकी में ताकत नहीं थी।’’
‘‘कहाँ ताकत ! तीन हमल में ही खलास।’’
‘‘लछिमा को ले आ। तू भी आ जा। यहीं रहकर लड़के को पाल-पोसकर बड़ा कर दे।’’
‘‘आदमी तरह-तरह की बातें करेंगे।’’
मेदिनी आनंदित नहीं हो पाता है बस हँसता है।
‘‘आदमी ! आदमी तो मैं हूँ, ये सब जानवर हैं। थू ! इन्होंने ही अफवाह फैलायी थी कि मेरे ऊपर महावीर का शाप है। लड़का नहीं होगा। मेरा वंश नहीं चलेगा। किसलिए कहा था ? बिसुन अहीर के साथ झगड़ा-फसाद हुआ था, इसलिए न ? कितना हरामीपन किया था उसने।’’
‘‘यह सब मैं नहीं जानती क्या ?’’

‘‘उसमें तू भी तो शामिल थी। बाढ़ा गाँव में कोई भी हरामीपन ऐसा नहीं, जिसमें तू शामिल न हो।’’
‘‘तो क्या जात-बिरादरी के खिलाफ जाती ?’’
‘‘लेकिन तब भी लछिमा मेरी रखैल थी। मैंने उसे हँसुली, बाजूबंद, झुमका- बनवाकर दिया था।
‘‘चाँदी का।’’
‘‘तुझ जैसों के लिए यही काफी है।’’
‘‘अब काम की बात करो, मालिक !’’
‘‘तुम लोगों को तीन बीघा जमीन दूँगा और दस रुपया महीना। जाते समय गाय भी दूँगा।’’ यह बात मेदिनी ने लम्बी साँस भरते हुए कही, क्योंकि ज़मीन और गाय में मेदिनी के प्राण बसते थे।
गुलाल अच्छी तरह समझ रही थी कि मेदिनी इस समय काफी मुसीबत में है, नहीं तो इतना सब देने  का वायदा नहीं करता। कुछ क्षण आँखें मूँदे वह चुपचाप बैठी रही। फिर बोली, ‘‘काम की बात पहले कर लें—अभी लड़का मेरे पास ही रहे, जब तक अशौच रहे बकरी का दूध पिला रही हूँ, पिलाती रहूँगी। इसके बाद नामकरण और पूजा करा लो। कुछेक दिन में सभी बवाल कट जायेंगे, फिर लछिमा आ जायेगी।’’

लड़का गुलाल गोद में ही था। उसने कहा, ‘‘तखत दो। जमीन में सोने से लड़के को सर्दी लग जायेगी। और सवा रुपया भी देना। सरसतिया का पता लगाओ, काम है ?’’
‘‘क्यों ? क्या काम है ?’’
‘‘पूजा करानी होगी।’’
‘‘किसलिए ?’’
‘‘माँ लड़के के आस-पास चक्कर लगा रही है। उसकी नजर से इसे बचाना है।’’
‘‘अच्छा।’’
‘‘और मालिक, छोटी बहू की लड़कियों को कोई तकलीफ न हो, नहीं तो माँ की आत्मा दुखी होगी। सभी को छोटी उमर में छोड़कर चली गयी।’’ गुलाल ने उसाँस भरी। लड़के का दाँत देखकर डर गयी।
‘‘ऐसा ?’’
‘‘हाँ मालिक, तुम गया जी में जब तक करमकाज नहीं करा देते, तब तक उसे शांति नहीं मिलेगी और वह किसी को चैन से नहीं रहने देगी। देखो क्या होता है !’’
‘‘तू पूजा करा दे।’’

‘‘सरसतिया करेगी।’’
लड़के के मुँह में दाँत देखकर डर गयी छोटकी ! मेदिनी नारायण के मन में लगातार एक अशुभ चिंता घुमड़ती रहती है—क्या यह लड़का मनहूस, अभागा जन्मा है ?

गुलाल उसके मन की बात समझती है। बोली, ‘‘तुम्हीं अब इसके माँ-बाप दोनों हो मालिक ! शेर-दिल मरद हो। डरने से काम कैसे चलेगा ? तखत, आग, तसला—सब भेज दो। एक तो बिन माँ का बच्चा, ऊपर से बरसात का मौसम। सेंक-ताप कर इसको बचाना होगा।’’
मेदिनी नारायण ज़रूरी बंदोबस्त करने के लिए चले जाते हैं। जाते-जाते बड़ी और मझली से कहते हैं, ‘‘लड़के के कमरे में अगर तुम लोगों की परछाईं भी पड़ गयी तो काटकर फेंक दूँगा। सरजू और सीता को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। अगर कुछ हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं।’’
दोनों तरह के अशौच कट जाते हैं-जन्म-अशौच और माँ के कारण मृत्यु-अशौच। इससे पहले ही सरसतिया काले कुत्ते की पूँछ के बाल, श्मशान की मिट्टी, तिमुहानी के बेल के पेड़ की छाल आदि ज़रूरी सामान जुटाकर माँ को कोप-दृष्टि से छुटकारा दिलाने के लिए गुप्त पूजा करती है। ये सब हो जाने के बाद पुरोहित जी आये। उन्होंने कल्याण होम आदि किया। हवन की भस्म को मकान के चारों कोनों में गाड़ दिया और फिर वे मेदिनी नारायण की ओर मुड़े, ‘‘मेदिनी नारायण, तुम बहुत भाग्यशाली हो। इस लड़को को तुम्हारे घर में जन्म नहीं लेना था। इसे तो किसी राजा के घर में पैदा होकर सोने की कटोरी में मट्ठा-मक्खन खाना-पीना था। तभी ठीक होता।’’
‘‘हम खिलायेंगे।’’

‘‘जन्म से पहले की सारी पूजा मैंने ही की थी। इसका नाम त्रितीर्थ नारायण रखना ही होगा, नहीं तो माँ ने जो तीनों तीर्थों का पानी पिया वह बेकार हो जायेगा। किन्तु कौन जन्मा है, जानते हो क्या ?’’
‘‘कौन जन्मा है, देवता !
पंडित जी जानते हैं कि कुछ समय तक के लिए मंच पर उन्हीं का अधिकार है। एकत्रित पड़ोसियों की ओर देखकर वे बोले, ‘‘मेदिनी सिंह का घर अब परमतीर्थ हो गया। यहीं गया, यहीं वाराणसी। किसने जन्म लिया है, आप लोग नहीं जान सके। इससे मेरे मन को बहुत चोट पहुँची है। धरम तो कलजुग में रहा ही नहीं। गांव के लोगों तक में गियान की कमी देखकर मन को और ज्यादा ठेस लगती है। सदजन हैं आप लोग, अब सोच देखें।’’
‘‘का सोचें, देवता ?’’
‘‘देवी पार्वती ने कौन-से-देवता का सृजन अपने अंगों से किया था और कौन लड़ा था शिव और विष्णु के साथ ? वेदव्यास बनकर महाभारत किसने लिखा था ? किसकी पूजा सबसे पहले की जाती है ? किसने केवल मात्र अपने माता-पिता का चक्कर काटकर प्रमाणित किया था कि माता-पिता ही विश्व और ब्रह्मांड हैं ? वे कौन-से देवता हैं ?’’
‘‘हाय राम ! गणेश जी महाराज !’’

‘‘मेदिनी सिंह, गणेश महाराज की भी इच्छा होती है कि धरती पर जन्म लें और मनुष्यों को अज्ञान से उबारें। इस लड़के में भी गणेश जी का अंश है, नहीं तो एक दाँत वाला शिशु कहीं होता है ?’’
इस तरह पंडित जी अपने वाक्चातुर्य से सभी को आश्चर्यचकित करते हैं।
‘‘यह बालक बनेगा अक्षय कीर्तिवान। देवता और बाम्हनों का मान बढ़ायेगा, कुल का नाम रोशन करेगा। कान के ऊपर मांस, लम्बा अँगूठा—ये सभी देवता के लक्षण हैं। इस लड़के की जो सेवा करेगा, उसका भला होगा। उसके लिए जो बुराई सोचेगा, उसका बुरा होगा।’’

मेदनी कह बैठा है, ‘‘बड़की और मझली ने लड़के को कुछ किया तो उन्हें काटकर फेंक दूँगा।’’
इस तरह नारायण का चालू नाम गणेश बन जाता है और गाँव के सभी लोग भर-पेट दही-चिउड़ा, गुड़, केला-पेड़ा खाकर खुश हो जाते हैं।


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