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शिरडी साई बाबा के चमत्कार

महेन्द्र मित्तल

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3943
आईएसबीएन :0000

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आध्यात्मिक जीवन की अनूठी झलक....

Shirdi sai baba ke chamatkar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

वह अनजान अतिथि

मनमाड के निकट पन्नी गांव एक नदी के किनारे बसा हुआ है। एक रात भयानक वर्षा आई। आँधी, तूफान और वर्षा को देखकर गंगा भावड़िया नामक मल्लाह अपनी नाव को बचाने के लिए घाट की ओर चला जाता है। उसे भय था कि कच्ची रस्सी के टूट जाने से उसकी नाव कहीं पानी में बह न जाए। नाव नहीं रहेगी तो वह अपनी रोजी-रोटी कैसे चलाएगा ?

उसके चले जाने के उपरांत उसकी पत्नी देवगिरि यम्मा अकेले घर में रह जाती है। बादलों की घुमड़न तेज वर्षा, चमकती विद्युत और सांय-सांय करती तेज हवा का तूफान कहर ढाने लगता है। देवगिरि यम्मा भयभीत हो उठती है। उसे अपने पति की सुरक्षा की चिन्ता है।

उसी समय अस्सी साल का एक बूंढा अतिथि देवगिरि यम्मा का द्वार खटखटाता है।
‘‘कौन है ?’’ देवगिरि यम्मा पूछती है।
‘‘बेटी बूंढा अतिथि हूँ। भूखा-प्यासा हूँ क्या सिर छिपाने के लिए इस भयानक रात में थोड़ी जगह दोगी ?’’ द्वार पर खड़ा बूढ़ा कहता है।
‘‘ठहरो आती हूँ।’’ भीतर से देवगिरि यम्मा जवाब देती है।

अतिथि सत्कार


देवगिरि यम्मा ने दरवाजा खोला और उस बूँढे व्यक्ति को पूरी तरह पानी में भीगा देखकर चौंक पड़ी।
‘‘अरे आपके तो सारे कप़डे भीग गए हैं ।’’
‘‘मेरे पास दूसरे कप़ड़े और कम्बल है बेटी ! मैं उस बरामदे में पड़कर रात काट लूँगा।’’ बूढ़े ने कहा,
‘‘कई घरों में दरवाजे खटखटाए लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला। निराश होकर तेरे दरवाजे पर  आया हूं बेटी ! सुबह से मैंने कुछ नहीं खाया है। खाने को कुछ मिल जाता तो ...।’’
‘‘मैं आपके लिए चारपाई और सूखा बिस्तर ला देती हूँ आप आराम से लेटिए। दो रोटियां सेंकने में मुझे देर नहीं लगेगी। खा-पीकर सोइएगा। ’’
‘‘भगवान तुम्हारी मनोकामना पूरी करे बेटी !’’ बूढ़ा बोला, ‘‘तुमने एक निराश्रित को आसरा दिया है। भगवान तुम्हारे इस पुण्य का बदला अवश्य देगा। वैसे रात अधिक हो चुकी है तुम जाकर सो जाओ। मैं रात  किसी तरह काट लूँगा।’’
‘‘नहीं-नहीं ऐसा नहीं हो सकता आप रुकिए। मैं आती हूँ अभी।’’ देवगिरि यम्मा ने दीपक वहीं बरामदे के ताक में रख दिया और भीतर चली गई।

शिव-पार्वती दर्शन


 उस रात देवगिरि यम्मा ने उस बूढ़े अतिथि का पूरा आदर-सम्मान किया। शीतल जल से उसके कीचड़ सने हाथ-पैर धुलाएं। उसे एक चारपाई और बिस्तर दिया। भोजन कराया बूँढा जन भोजन करके लेट गया तो वह भी सोने चली गयी। परंतु उसे नींद नहीं आई। उसे अपने पति की चिन्ता लगी थी। वह अभी तक नहीं लौटा था। आधी रात बीत गई। धीरे-धीरे आधी रात बीत गई। तीसरे पहर किसी ने फिर से द्वार पर दस्तक दी तो वह चौंककर उठ खड़ी हुई। उसे लगा उसका पति घाट से लौट आया है। वह शीघ्रता से दरवाजे के पास पहुंची और हड़बड़ाहट में दरवाजा खोला। परंतु एकाएक वह चौंक पड़ी...।

‘‘आ...आ..आप.... ?’’ देवगिरि यम्मा के मुख से बोल न फूटा ।
दरवाजे पर साक्षात शिव-पार्वती अभय मुद्रा में खडे़ थे। वे मन्द-मन्द मुस्करा रहे थे। शिव ने कहा, ‘‘हाँ बेटी ! मैं शिव हूँ और यह मेरी शक्ति पार्वती, तुम्हारी भक्ति सेवा और सत्कार से हम प्रसन्न है। तुम अपने अश्रु पोंछ लो बेटी ! आज तुम्हारे दुखों का अंत हो गया। संतान न होने से तुम दुखी थीं। तुम शीघ्र ही माँ बनोगी दो संतानों के बाद तीसरी संतान के रूप में स्वयं तुम्हारी कोख से जन्म लूँगा।’’ कहकर शिव-पार्वती अंतर्धान हो गए।

जन्म और विछोह


घाट से गंगा भावड़िया लौटा तो देवगिरि यम्मा ने उसे सारी बात बताई। गंगा भावड़िया को इस बात का दुख हुआ कि वह भगवान के दर्शन नहीं कर सका। उसे बड़ा मलाल होने लगा।

समय आने पर गंगा भावड़िया के यहाँ जुड़वां पुत्र हुए,  पर उनमें कोई भी जीवित नहीं रहा। तीसरी बार देवगिरि यम्मा ने एक बालक को जन्म दिया तो गंगा भावड़िया को वैराग्य हो गया और वह घर छोड़कर चला गया।

कुछ दिन बाद देवगिरि यम्मा अपने बच्चे को गोद में लेकर पति की खोज में निकली। परंतु एक पहाड़ी से फिसलकर वह एक खाई में जा गिरी और मर गई। उसका बालक उसकी गोद से छिटककर एक पहाड़ी पगडण्डी के निकट एक झाड़ पर जा गिरा। उसी समय उधर से पति-पत्नी अपने घर लौट रहे थे। उस निर्जन में बालक को रोता देखा, उन्होंने उसे उठा लिया और वे उसे अपने घर ले आए बालक को पाकर वह ग्रामीण युवती बहुत प्रसन्न थी। क्योंकि वह निःसंतान थीं वह बड़े चाव से उसका लालन-पालन करने लगी।

मस्जिद में शालिग्राम की स्थापना


कुछ दिन बाद वह किसान बीमार पड़ा और भगवान को प्यारा हो गया। उसकी पत्नी पर मुसीबतों का  पहाड़ टूट पड़ा, पर उसने हिम्मत नहीं हारी वह उस बालक को पूरी हिम्मत और लाड़-प्यार से पालती रही।
बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होकर गली में खेलने लायक हो गया। बालक की धर्ममाता ने उसका नाम ‘बाबू’ रखा था। गोली खेलने में वह पक्का उस्ताद था। एक दिन उसने साहूकार के बेटे से शालिग्राम जीत लिया। और उसे ले जाकर गाँव की मस्जिद में स्थापित कर दिया और उसकी पूजा करने लगा।

मस्जिद के नमाजियों ने उसे पूजा करते हुए देखा तो वे आग-बबूला हो उठे। उन्होंने धक्के मारकर बाबू को मस्जिद से बाहर धकेल दिया। बाबू चिल्लाता रहा, ‘‘यह अल्लाह का घर है मैं क्या यहाँ भगवान की पूजा नहीं कर सकता ? भगवान और अल्लाह में अन्तर क्या है ? दोनों एक ही ईश्वर के नाम हैं। उसी ने हम सबको बनाया है।’’
चुपचाप चला जा यहाँ से।’’ मस्जिद के मुल्ला जोर से चिल्लाए, ‘‘फिर दुबारा यहां आया तो हम तेरा सिर तोड़ देंगे। तू हिंदू है। हिंदू लोग मस्जिद में पूजा नहीं कर सकते ।’’

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