लोगों की राय

अमर चित्र कथा हिन्दी >> ध्रुव और अष्टावक्र

ध्रुव और अष्टावक्र

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4801
आईएसबीएन :81-7508-477-4

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

269 पाठक हैं

अष्टावक्र की कथा महाभारत से ली गयी है जो कि अमर चित्र कथा के द्वारा सचित्र प्रस्तुत की जा रही है

Dhurva Aur Ashtavak A Hindi Book by Anant Pai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

ध्रुव

ध्रुव की कथा भागवत पुराण से ली गयी है। केवल पाँच वर्ष की नन्हीं उम्र में ही ध्रुव ने भगवान् विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। बालक की अद्भुत भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवान् ने उसे दर्शन दिये। उसे वरदान दिया कि वह छत्तीस हज़ार वर्ष तक पृथ्वी पर राज्य करेगा। आज भी परंपरावादी हिंदू उत्तर दिशा में टिमटिमानेवाले एक अचल तारे को ध्रुव नक्षत्र कह कर पुकारते हैं।

विष्णु पुराण के अनुसार ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् ने उसे वह स्थान दिया, जो तीनों लोकों में सबसे महान है। सभी ग्रहों, सब नक्षत्रों और सब देवगणों से श्रेष्ठ है।

अष्टावक्र की कथा महाभारत से ली गयी है। अज्ञातवास के समय पांडवों ने अनेक तीर्थों के दर्शन किये थे। जब वे श्वेतकतु के आश्रम पर पहुँचे, तो उनके साथ आये हुए लोमश ऋषि ने श्वेतकेतु के भांजे अष्टावक्र की यह कथा पांडवों को सुनाई थी।

 

राजा उत्तानपाद की बड़ी रानी सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था। माँ-बेटे का ऐसा दुर्भाग्य कि छोटी रानी सुरुचि के प्रति राजा की प्रेमांधता के कारण इन दोनों की उपेक्षा होती थी।
वे आ रही हैं रानी सुरुचि।

इनका तो बस एक ही लक्ष्य है कि किसी तरह इनका बेटा उत्तम ही राजा बन जाये। बेचारा ध्रुव !
सुरुचि अपने बेटे के पास गयीं, तो वह बोला-
माँ, इस समय पिताजी खाली बैठे हैं। मैं जा कर उनकी गोदी में बैठ जाऊँ।
ज़रूर बैठो, मेरे मुन्ने ! भावी राजा का उस गोद पर पूरा अधिकार है।


प्रथम पृष्ठ

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book