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पौराणिक कथाएँ >> महाभारत की कहानियाँ

महाभारत की कहानियाँ

राजबहादुर सिंह

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5030
आईएसबीएन :81-89373-13-7

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महाभारत की कहानियाँ

Mahabharat Ki Kahaniyan A Hindi Book by Rajbahadur Singh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लाख का घर

बात बहुत पुरानी है। उन दिनों चचेरे भाई पाण्डव-कौरवों में अनबन होने लगी थी। कौरवों के पिता धृतराष्ट्र उन दिनों राजगद्दी पर थे। पाण्डव उनकी सेवा अपने पिता के ही समान करते थे। उनके राज्य में कोई सिर उठाता तो उसे दबाने के लिए पाण्डव ही भेजे जाते थे। धीरे-धीरे पाण्डव अपनी वीरता के कारण नामी हो गए। पाण्डव पांच भाई थे। जिनके नाम थे—युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव।

धृतराष्ट्र अन्धें थे, उनकी ऊपरी आँखें भी नहीं थी; पर मन की आँखें भी मर चुकी थी। पाण्डव उनकी सेवा में लगे रहते थे, फिर भी धृतराष्ट्र प्रसन्न न होते थे। वह मन-ही-मन जलते थे कि उनके भतीजे ऐसे शूरवीर और नामी होते जा रहे हैं। उनके लड़के दुर्योधन आदि सौ भाई थे; फिर भी वह पाँचों पाण्डव के सामने फीके लगते थे। उनमें दूसरे की बुराई सोचने और छल-कपट का जाल बिछाने की बुरी आदतें थीं। इसीलिए लोग उन्हें दिल से नहीं चाहते थे।

पाण्डवों की बड़ाई सुनते-सुनते धृतराष्ट्र का मन पक गया। वह आँख से तो देखते नहीं थे पर कान से भतीजों की बड़ाई और बेटों की बुराई सुनकर मन-ही-मन कुढ़ते सोचते यह भतीजे न होते तो मेरे लड़के अधिक चमकते। पर भतीजे भी तो राज परिवार के ठहरे। उनसे किस तरह पिण्ड छुड़ाया जाए ?


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