लोगों की राय

मनोरंजक कथाएँ >> नामदेव की निष्ठा

नामदेव की निष्ठा

दिनेश चमोला

प्रकाशक : सुयोग्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5093
आईएसबीएन :000

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

315 पाठक हैं

इसमें नामदेव की निष्ठा की कहानी का उल्लेख किया गया है।

Namdev Ki Nishtha -A Hindi Book by Dinesh Chamola

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नामदेव की निष्ठा

प्रकृति की गोद में बसा था एक सुन्दर गाँव, कौशलपुर। वहाँ एक वैद्यराज थे नामदेव। पास-पड़ोस, के गाँवों में जो कोई भी कभी बीमार होता तो वह सुबह-सवेरे नामदेव जी के घर पहुँच जाता। नामदेव जी परोपकारी होने के साथ-साथ दयालु भी थे। वे रोगी को भगवान् मानते थे। वैद्य जी को जड़ी-बूटियों का गहरा ज्ञान था। जब सारा संसार सो जाता तो नामदेव जी जंगल की ओर चल पड़ते। उनका मानना था कि रात को जड़ी-बूटियाँ आपस में बातें करती हैं व असाध्य रोगों के निवारण की जानकारी भी देती हैं।

वैद्य जी के घर रोगियों की दिन-रात भीड़ लगी रहती। इतना होते हुए भी वह बहुत गरीब थे। यह बात किसी को समझ नहीं आती थी। यहाँ तक कि स्वयं वैद्य जी को भी। वह मन-ही-मन चिंतित रहते कि ऐसे परोपकार का भी क्या लाभ जिससे परिवार दुखी रहे। किन्तु इसके सिवाय चारा भी क्या था उनके पास। वैद्य जी पूरे इलाके में प्रसिद्ध थे। लेकिन पत्नी बार-बार व्यंग्य करती—‘‘नाम चाटना है क्या—परिवार का बच्चा-बच्चा तो पैसों के लिए तरसता रहता है—नाम तो वह है जिससे कुछ खाने-पीने का भी साधन जुटे।’’

बात बिलकुल सच थी इसलिए वैद्य जी चुपचाप सुनते रहे। लेकिन जब पत्नी बहुत कह सुनाती तो वह उसे समझाते हुए कहते—‘‘अरी भागवान् ! हर चीज का अपना एक समय होता है। ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा। धन प्राप्त करना कोई हमारे हाथ में थोड़ी ही है।। हम तो केवल जड़ी-बूटियों का ही लेन-देन कर सकते हैं। तुम तो व्यर्थ में क्रोधित होती हो। कहीं मेरी मेहनत व ईमानदारी में कमी है तो बताओ ?’’
कुछ विचार करने पर वैद्य जी की पत्नी भी भाग्य की विवशता को समझ जाती।


प्रथम पृष्ठ

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book