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मनोरंजक कथाएँ >> काबुली वाला

काबुली वाला

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : लिट्रेसी हाऊस प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6234
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कृति काबुली वाला

Kabuli Vala-A Hindi Book by Nitu Jhari

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

काबुली वाला


मेरी छोटी बेटी मिनी की उम्र कोई पाँच साल की है वह एक पल भी बिना कुछ बोले चुप नहीं रह सकती। संसार में पैदा होकर केवल एक साल उसने बोलना सीखने में लगाया था, उसके बाद जब तक वह जागती है बिना कुछ बोले नहीं रह सकती।
कभी-कभी उसकी माँ धमकी देकर उसका मुँह बंद कर देती है लेकिन मैं वैसा नहीं कर सकता।
मिनी का खामोश रहना अप्राकृतिक-सा मालूम होता है। ऐसी स्थिति को ज्यादा देर तक सहन नहीं किया जा सकता। इसलिए मेरे साथ उसका वार्तालाप बड़े मजे से जारी रहता है।

सवेरे मैंने अपने उपन्यास के सत्रहवें अध्याय को ज्योंही हाथ लगाया, मिनी वहाँ आ पहुँची और बोली- ‘‘पापा, रामदयाल ‘काक’ को कौआ बोल रहा था, वह कुछ नहीं जानता, है न पापा ?’’

मैं उसे संसार की भाषाओं की विभिन्नता से वाकिफ कराने ही लगा था कि वह दूसरे विषय पर प्रश्न कर बैठी-पापा, सुनो, भोला कह रहा था-आकाश से हाथी अपनी सूँड़ से पानी बरसाता है। क्या यह कभी हो सकता है ? वह इतना झूठ बोलता है कि क्या बताऊँ-इतनी बकवास कर सकता है-रात-दिन केवल अगड़म-बगड़म बकता है, बकता ही जाता है।
इसके बारे में मेरी राय को बिना सुने ही पूछ बैठी- ‘‘पापाजी, अम्मी तुम्हारी कौन लगती है?’’
मन-ही-मन मैंने कहा-साली !
मुँह से बोला-‘‘मिनी, तू अब तक भोला के साथ खेलने जा, अभी मेरा कुछ काम है।’’


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