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भगवती गीता

कृष्ण अवतार वाजपेयी

प्रकाशक : भगवती पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :125
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6276
आईएसबीएन :81-7775-072-0

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गीता का अर्थ है अध्यात्म का ज्ञान ईश्वर। ईश्वर शक्ति द्वारा भक्त को कल्याण हेतु सुनाया जाय। श्रीकृष्ण ने गीता युद्ध भूमि में अर्जुन को सुनाई थी। भगवती गीता को स्वयं पार्वती ने प्रसूत गृह में सद्य: जन्मना होकर पिता हिमालय को सुनाई है।

Bhagwati Gita-A Hindi Book by Krishna Awtar Vajpai - भगवती गीता - कृष्ण अवतार वाजपेयी

 

प्राक्कथन

भारत एक सनातन धर्मी देश है। यहाँ सदैव भौतिक के स्थान पर आध्यात्मक को वरीयता मिली है। यही गुण इसकी शक्ति है। अध्यात्म के आश्रय (सम्बल) में मनुष्य भौतिक कष्ट सहन कर लेता है। अध्यात्म वह शक्ति है जिसमें आत्मा प्रबल और ऊर्जा सम्पन्न होती है तथा प्रतिदिन नव उत्साह और आशा से कार्य करती है। हारा-थका व्यक्ति भी राम का नाम लेकर अपना श्रम विस्मृत कर देता है।

भारतीय देव-देवियाँ सदा भक्तों पर कृपा करते हैं। उनका कोई-न-कोई उत्सव वर्ष भर चलता रहता है। मनुष्य उत्सव प्रिय है। जड़ चेतन में एक शक्ति है वह शक्ति ही भगवती शक्ति है, इस शक्ति के समक्ष सभी असहाय हैं वह सर्वशक्तिमान। समस्त विश्व ही जिस से संचालित है वह परात्पर जगदम्बा शक्ति है। मानव शक्ति सीमित है यह शक्ति असीमित, अपरिमित और शाश्वत है। इसके दर्शन वायु के समान दुर्लभ हैं किन्तु अनुभव प्रतिक्षण है। ऐसी शक्ति की उपासना सदा कल्याणकारी है। यह शक्ति वर्णन वेद से लेकर पुराण पर्यन्त विस्तार से है। सद्य जाता कन्या (पार्वती) अपने पिता को उपदेश देकर, अनेक रूप दिखाकर, अध्यात्म का पाठ पढ़ा रही है यह शक्ति है इसी को भगवती कहा गया है।

भगवती प्रकाशन नाम तो था किन्तु भगवती गीता का प्रकाशन अब हो कर सार्थक नाम होगा। गीता का अर्थ है अध्यात्म का ज्ञान ईश्वर। ईश्वरी शक्ति द्वारा भक्त को कल्याण हेतु सुनाया जाय। श्रीकृष्ण ने गीता युद्धभूमि में अर्जुन को सुनाई थी। भगवती गीता को स्वयं पार्वती ने प्रसूत गृह में सद्यःजन्मना होकर पिता हिमालय को सुनाई है। गीता सुनाकर ही माता का स्तनपान एक सामान्य कन्या की भांति करने लगीं। इस गीता को भी भगवान शंकर ने नारद मुनि को सुनाया है। घोषणा भी कर दी कि यह मोक्षप्रदायी गीता है।

मैं भगवती प्रकाशन के उत्साही तथा आध्यात्मिक हृदयस्थल वाले राजीव जी का आभारी हूँ जिन्होंने इसके प्रकाशन का उत्साह प्रकट किया। उनके मंगल की कामना करते हुए इसका सम्पादन किया है। आशा है यह दुर्गा भक्तों एवं भगवती उपासकों को शान्ति, सुख और कल्याण प्रदान करेगी।

युक्तेन मनसा वयं देवस्य सवितुः सवे। स्वर्ग्याय शक्त्या।।
(यजुर्वेद 11/2)

हमारा मन हर क्षण (सदा) भगवान की आराधना में लगा रहे तथा हम भगवत्प्राप्ति जनित अनुभूति हेतु पूर्ण शक्ति से प्रयत्नशील रहें।

या स्वेच्छयास्य जगतः प्रविधाय सृष्टिं
सम्प्राप्य जन्म च तथा पतिमाप शम्भुम्।।
उग्रैस्तपोभिरपि यां समवाप्य पत्नीं
शम्भुः पदं हदि दधे परिपातु सा वः।।

जिन्होंने अपनी इच्छा से इस विश्व की रचना करके स्वयं जन्म लेकर भगवान आशुतोष (शिव) को पतिरूप में प्राप्त किया तथा शिव ने कठिन तपस्या से जिनको पत्नी रूप में प्राप्त कर जिनका चरण अपने हृदय पर धारण किया, वे भगवती शिवा आप सब की रक्षा करें।

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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. कामना
  3. गीता साहित्य
  4. भगवती चरित्र कथा
  5. शिवजी द्वारा काली के सहस्रनाम
  6. शिव-पार्वती विवाह
  7. राम की सहायता कर दुष्टों की संहारिका
  8. देवी की सर्वव्यापकता, देवी लोक और स्वरूप
  9. शारदीय पूजाविधान, माहात्म्य तथा फल
  10. भगवती का भूभार हरण हेतु कृष्णावतार
  11. कालीदर्शन से इन्द्र का ब्रह्महत्या से छूटना-
  12. माहात्म्य देवी पुराण
  13. कामाख्या कवच का माहात्म्य
  14. कामाख्या कवच
  15. प्रथमोऽध्यायः : भगवती गीता
  16. द्वितीयोऽध्याय : शरीर की नश्वरता एवं अनासक्तयोग का वर्णन
  17. तृतीयोऽध्यायः - देवी भक्ति की महिमा
  18. चतुर्थोऽध्यायः - अनन्य शरणागति की महिमा
  19. पञ्चमोऽध्यायः - श्री भगवती गीता (पार्वती गीता) माहात्म्य
  20. श्री भगवती स्तोत्रम्
  21. लघु दुर्गा सप्तशती
  22. रुद्रचण्डी
  23. देवी-पुष्पाञ्जलि-स्तोत्रम्
  24. संक्षेप में पूजन विधि

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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