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चिंतन करें चिंतामुक्त रहें

स्वेट मार्डेन

प्रकाशक : परमेश्वरी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7845
आईएसबीएन :978-93-80048-20

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प्रसिद्ध विचारक स्वेट मार्डेन की पुस्तक ‘Conquest of Worry’ का मात्र भावानुवाद...

Chintan Karein Chintamukt Rahein - A Hindi Book - by Swett Marden

अमेरिका के नए विचार आंदोलन से जुड़े एक प्रख्यात लेख और दार्शनिक। न्यू हैम्पशायर के थॉर्नटन गोर में लेविस और मार्था मार्डेन की पहली संतान के रूप में जन्म। 22 वर्षीया माँ केवल तीन वर्ष के मार्डेन और उसकी दो बहनों को कृषक और शिकारी पिता के सहारे छोड़कर चल बसी। सात वर्ष के थे तो जंगल में घायल पिता की मृत्यु। दोनों बहनों के साथ यहाँ-वहाँ भटकते रहे। घर-खर्च के लिए एक ‘बँधुआ बाल श्रमिक’ के रूप में कार्य। इन्हीं दिनों स्कॉटिश लेखक सैमुएल स्माइल्स की पुस्तक पढ़ी और आत्मविकास के लिए प्रेरित हुए। 1871 में बोस्टन विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि। 1881 में पुनः हार्वर्ड से स्नातकोत्तर में विशेषज्ञता और 1882 में एल.एल.बी.। बोस्टन भाषण-कला विद्यालय तथा एण्डोवर धर्मवैज्ञानिक गुरुकुल में भी शिक्षा।

कॉलेज़ के दिनों में होटल की नौकरी, बाद में होटल व्यवसाय। शिकागो में होटल मैनेजर की नौकरी करते हुए लेखन शुरू किया। मार्डेन पर स्माइल्स के साथ-साथ ओलिवर बेंडेल होम्स, जूनियर तथा राल्फ वाल्डो एमर्सन के दार्शनिक विचारों का प्रत्यक्ष प्रभाव। ये दोनों ही 1890 के आसपास के नए विचार आंदोलन के अग्रदूत थे।

पहली पुस्तक ‘पुशिंग टु द फ्रंट’ (दो खंड) 1894 में प्रकाशित। 1897 में ‘सक्सेस’ पत्रिका की स्थापना तथा एलिजाबेथ टाउन की विचार-पत्रिका ‘नाउटिलस’ में दो दशकों तक सहयोग। ‘द मिरैकल ऑफ राइट थाउट एंड द डिवाइनिटी ऑफ डिज़ायर’, ‘कैरेक्टर : द ग्रैंडेस्ट थिंग इन द वर्ल्ड’, ‘एन आयरन विल’ तथा ‘एक्सेप्शनल इम्पलॉयी’ आदि प्रमुख पुस्तकें।

चिंता के संबंध में


चिंता और चिंतन एक ही माँ की दो संताने हैं। चिंताग्रस्त व्यक्ति चिंतित रहते हैं और सफल नहीं होते, क्योंकि उन्हें चिंता हर समय असफलता की ओर धकेलती रहती है। परंतु जो व्यक्ति चिंता को भूलकर चिंतन करते हैं, वे संसार में सफलता प्राप्त करते हैं और अपना नाम अमर कर जाते हैं।

चिंताग्रस्त व्यक्ति सोचता अधिक है और करता कम है। वह सफलता और असफलता के मध्य की दूरी नापने में ही सारा दिन व्यतीत कर देता है। जब संध्या को सूर्य थक-हारकर पश्चिम की ओर अस्त होने खड़ा होता है और निराश चल देता है घर की ओर।

इसके विपरीत चिंतन करने वाला व्यक्ति सोचता कम है और करता अधिक है। वह सफलता-असफलता के मध्य की दूरी नापने का प्रयत्न नहीं करता है, क्योंकि वह भली-भाँति जानता है कि इन दोनों के मध्य में केवल ‘अ’ अक्षर का ही अंतर है। पराजित हुए तो तख्ता मिलेगा और विजयी होने पर तख्त (गद्दी)। पराजित हुए तो मूर्ख कहलाएँगे और विजयी हुए तो तख्त पर जा बैठेंगे और लोग इनकी बुद्धि की प्रंशा करेंगे।

अब आप चिंता करते हैं या चिंतन, यह तो आपकी अपनी सोच पर निर्भर करता है; परंतु इतना अवश्य जाने लें, चिंता चिता के समान है जो जीवित व्यक्ति को जलाती है, स्वयं नहीं जलती और चिंतन एक बार मुर्दे में भी प्राण डालने में समर्थ होता है।

अतः उठिए, चिंता छोड़ चिंतन की ओर अग्रसर होइए, क्योंकि ऐसा करके ही आप सफल हो सकते हैं। विश्व में सभी महापुरुषों ने चिंता को स्वयं से दूर रखा और चिंतन करते रहे, चाहे स्वामी विवेकाननंद हों या महात्मा गांधी। इनके चिंतन करने का विषय अलग-अलग हो सकता है, परंतु किसी भी विषय में किया गया चिंतन निष्फल और व्यर्थ नहीं जाता है। इसलिए आप चिंता को छोड़कर चिंतन करने की ओर कदम बढ़ाएँ। एक-एक कदम लगातार बढ़ाते रहने से मनुष्य अपनी निर्धारित मंजिल के निकट जा पहुँचता है। चिंतन का यही सबसे बड़ा व अनोखा गुण है। इसके विपरीत चिंता करने वाला व्यक्ति प्रयत्न करने पर भी अपने लक्ष्य के निकट नहीं पहुँच पाता। उसका लक्ष्य उससे आगे बढ़ता चला जाता है, क्योंकि वह चिंता में फँसा एक कदम आगे की ओर बढ़ाता है और दो कदम पीछे खिसक जाता है।

‘चिंतन करें, चिंतामुक्त रहें’ पुस्तक आपके हाथों में है। यह पुस्तक प्रसिद्ध विचारक स्वेट मार्डेन की पुस्तक ‘Conquest of Worry’ का मात्र भावानुवाद है न कि अक्षरशः अनुवाद है। अतः इस पुस्तक को अनुवाद नहीं, मौलिक पुस्तक समझकर अध्ययन करने से अधिक आनंद प्राप्त होगा और लाभ भी अधिक होगा। आप चिंता से पूरी तरह मुक्त होकर चिंतन-मनन करने में जुट जाएँगे। आज के जीवन की इस आपाधापी से अलग अपना मार्ग बना सफलता के पथ पर अग्रसर हो आगे बढ़ते चले जाएँगे।

यदि इस पुस्तक का अध्ययन कर एक भी पाठक स्वयं को चिंता से मुक्त कर सका और चिंतन-मनन करने लगा तो मेरा परिश्रम सार्थक सिद्ध होगा।
बस, इतना ही।

—श्रवण कुमार

चिंतन करें, चिंतामुक्त रहें


पौराणिक कथाओं में हम पढ़ते हैं कि किसी मनुष्य द्वारा देवी-देवताओं की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया जाता था। वे जब प्रसन्न हो जाते तो मुस्कराते हुए प्रकट होकर भक्त से कहते, ‘हम तुम्हारी आराधना से प्रसन्न हुए। अपनी इच्छा बताओ। तुम जो भी चाहो निःसंकोच माँग लो।’ इस पर भक्त ने जो भी इच्छापूर्ति करने की प्रार्थना की, उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखा और तथास्तु कहकर लोप हो गए। परंतु उनके वरदान के फलस्वरूप मनुष्य को मनचाही वस्तु, सुख-संपदा व समृद्धि प्राप्त हो गई। दैवी कृपा से उसके सभी कष्टों का निवारण हो गया।

भला आधुनिक युग में कोई ऐसी कोरी कल्पनाओं पर कैसे विश्वास कर सकता है, परंतु अभी भी बहुत-से अंधविश्वासी लोग हैं, जो इन कथाओं पर आँखें मूँदकर विश्वास करते हैं। ऐसी कथाओं को सत्य के रूप में स्वीकार कर तर्क करते हैं। हम ऐसे लोगों को अंधविश्वासी कहकर उपहास उड़ा सकते हैं, जो आज इस विज्ञान के युग में भी इन कोरी कल्पनाओं पर अंधविश्वासों को सत्य मानते हैं। इन सभी कल्पनाओं की वास्तविकता के पीछे भगवान् का मनुष्य के सम्मुख आकर प्रकट होना केवल एक प्रतीकात्मक रूप में तो स्वीकार किया जा सकता है, परंतु यथार्थ में ऐसा कदापि नहीं होता होगा। हम इसकी एक अन्य प्रकार से भी व्याख्या कर सकते हैं—वास्तव में तपस्या प्रतीक है कठोर परिश्रम का और मेहनत का फल तो अवश्य ही मिलता है। पहले भी श्रम का फल मिलता था और आज भी। मनुष्य का परिश्रम कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। परिश्रम का सफल होना ही ईश्वरप्रदत्त वरदान है। हम ऐसा भी कह सकते हैं।

इसलिए श्रम का महत्त्व सदैव से ही रहा है, परंतु हमें वर्तमान में ही जीना चाहिए। भूत तो व्यतीत हो चुका है। यदि हमारा वर्तमान सुखद और खुशहाल होगा तब भविष्य तो सुख से परिपूर्ण होगा ही। इसलिए वर्तमान को विस्मृत कर भविष्य की चिंता में घुलते जाना केवल मूर्खता ही है। तात्पर्य यह हुआ कि जिस व्यक्ति का वर्तमान उज्ज्वल नहीं है, उसका भविष्य भी कदापि सुखद व सुंदर नहीं हो सकता। अतः सदैव वर्तमान में जियों और भविष्य की कल्पना करना छोड़ दो। भूत को पूरी तरह निर्थक समझ भुला दो। सदैव वर्तमान को परिश्रम से सुंदर बनाने का प्रयत्न करो।

ईसा मसीह ने भी अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए कहा था कि कल की चिंता करना पूरी तरह निर्र्थक है। अतः कल की चिंता करना छोड़ दो। सत्य ही है, कल को किसने देखा है ? वास्तव में कल कभी नहीं आता है। सदैव कल आज में परिवर्तित होकर हमारे सम्मुख आ खड़ा होता है। कल आगे बढ़ जाता है। कल का आज में परिवर्तित होने का क्रम चलता रहता है, आगे भी चलता ही रहेगा। कल सदैव आज में परिवर्तित होकर अपना अस्तित्व खो देता है। इसलिए कल को किसने देखा है।

अतः तात्पर्य यह है कि हमें आज भूखे रहकर कल के लिए भोजने एकत्रित नहीं करना चाहिए। भविष्य की ओर देखना अच्छा व उद्देश्यपूर्ण है, परंतु आज अर्थात् वर्तमान को भी विस्मृत कर नजरअंदाज करना भी मूर्खता ही है। मनुष्य भविष्य के साथ-साथ वर्तमान की योजनाएँ भी बनाए। ऐसा करना सर्वथा उचित और आवश्यक भी है, परंतु वर्तमान को नजरअंदाज कर भविष्य के सुंदर व सुखद स्वप्न देखना भी पूरी तरह निर्थक व महत्त्वहीन है। भविष्य की योजनाओं की परिकल्पना मन में अवश्य सँजोनी चाहिए, परन्तु भविष्य की चिंता करने व सुखद भविष्य के स्वप्न देखकर अपने वर्तमान को खराब करना किसी प्रकार भी उचित नहीं।

चिंता का मुख्य कारण आज की भौतिक एवं शीघ्रता से धनी बनने का लक्ष्य और आपाधापी-भरे जीवन की देन है। इसी कारण हम नित्य किसी न किसी नई चिंता में स्वयं को डुबोए रहते हैं। हम यह जानते भी हैं कि व्यर्थ की चिंता करने से कोई लाभ नहीं होने वाला है। हमारा जितना समय खाली बैठे व्यर्थ की चिंता में बीत जाता है, उस समय का सदुपयोग वर्तमान को सुखद बनाने के लिए करना ही अधिक उचित है। अतः भविष्य की चिंता छोड़ सदैव वर्तमान में जिएँ।

भूत, वर्तमान और भविष्य आखिर है क्या ? भूत अर्थात् जो व्यतीत हो चुका है; मर चुका है। वर्तमान में हम जी रहे हैं। भविष्य अज्ञात और आशापूर्ण स्वप्नों का जाल है। इनमें महत्त्वपूर्ण है वर्तमान, परंतु हम वर्तमान को गौण कर भविष्य के स्वप्न देखते हैं। अतीत और भविष्य के पीछे नहीं भागना चाहिए। स्वयं को वर्तमान में स्थिर रखें; वर्तमान से समझौता करें। उसी में संतोष कर सुख का जीवन जिएँ। वर्तमान ही हमारे सम्मुख होता है।

रोम के प्रसिद्ध कवि होंस ने भी ईसा से तीन सौ वर्ष पूर्व कहा था—वर्मतान का निर्माण करो भूत को भुला दो। आज के विश्वास के सहारे कल यानी भविष्य का निर्माण करो। तभी तुम सुखी जीवन व्यतीत करने में समर्थ हो सकते हो। अन्यथा भूत और भविष्य के झूले में बैठ झूलते-झूलते अपने वर्तमान को भी पूरी तरह बिगाड़कर रख दोगे।

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