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मिस्टर बी.ए.

आर. के. नारायण

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7956
आईएसबीएन :9788170289135

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‘Bachelor of Arts’ का हिन्दी अनुवाद...

Mister B A - A Hindi Book - by R. K. Narayan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आर. के. नारायण भारत के पहले ऐसे लेखक थे जिनके अंग्रेज़ी लेखन को विश्वभर में प्रसिद्धि मिली। अपनी रचनाओं के लिए रोचक कथानक चुनने और फिर उसे शालीन हास्य में पिरोने के कारण वे न जाने कितने ही पुस्तक प्रेमियों के पसंदीदा लेखक बन गए।

इस उपन्यास की कहानी चंद्रन नाम के एक युवक के इर्द-गिर्द घूमती है जिसने बी.ए. पास कर लिया है और जिसे अब यह तय करना है कि जीवन में आगे क्या किया जाए। एक ओर उसके सामने अच्छी नौकरी कर अपना भविष्य संवारने का सवाल है तो दूसरी ओर अपने प्रेम को पाने की तड़प। दिलचस्प विषय के साथ ही किरदारों के जीवंत चित्रण और जगह-जगह हास्य के तड़के से यह उपन्यास बहुत रोचक बन गया है।

 

मिस्टर बी.ए.

1

 

चन्द्रन कॉलेज यूनियन की सीढ़ियाँ चढ़ ही रहा था, कि यूनियन के सेक्रेटरी नटेसन ने उसे झपट कर पकड़ लिया, और कहा, ‘‘मैं तुम्हारी ही तलाश कर रहा था। अपना पुराना वादा याद है?’’
‘‘नहीं’’, चन्द्रन ने बचाव करने के ख्याल से फ़ौरन जवाब दिया।

‘‘तुमने कहा था कि जब कभी मुझे वक्ता की ज़रूरत हो, मैं तुम्हें ले सकता हूँ। इस वक्त मुझे तुम्हारी सख्त ज़रूरत है। कल शाम की भाषण-प्रतियोगिता में विषय का प्रवर्तन करने के लिए मुझे कोई नहीं मिल रहा। विषय है कि इस सभा के मत में इतिहासकारों का क़त्ल सबसे पहले किया जाना चाहिए। इस पर तुम्हें बोलना है शाम को पाँच बजे।’’ यह कहकर उसने चलने की कोशिश की लेकिन चन्द्रन ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया : ‘‘मैं इतिहास का विद्यार्थी हूँ। मैं इस पर नहीं बोल सकता। क्या विषय चुना है ! मेरा प्रोफ़ेसर मुझे कच्चा चबा जाएगा।’’

‘‘इसकी फ़िक्र मत करो। मैं उसे निमन्त्रित ही नहीं करूँगा।’’
‘‘कोई और विषय क्यों नहीं लेते?’’
‘‘अब यूनियन का प्रोग्राम बदला नहीं जा सकता।’’

चन्द्रन ने मिन्नत की : ‘‘किसी और दिन किसी और विषय पर बुलवा लेना।’’
‘असम्भव,’ सेक्रेटरी ने कहा और अपने को उसकी पकड़ से छुड़ा लिया।
चन्द्रन फिर बोला, ‘‘तो फिर मुझे विरोध पक्ष में रख दो।’’
‘‘तुम प्रवर्तन बहुत शानदार करते हो। नोटिस घंटे भर में जारी हो जाएगा। कल शाम पाँच...’’

चन्द्रन घर लौट गया और सारी रात सपने देखता रहा कि कुल्हाड़ी से अपने इतिहास के प्रोफ़ेसर पर हमला कर रहा है। सबेरे बैठकर भाषण की तैयारी शुरू की। कागज़ लिया और उस पर लिखने लगा :

‘‘इति...कारों का पहले क़त्ल करना चाहिए। दूसरे नम्बर पर किनका करना होगा? वैज्ञानिकों का या बढ़इयों का? अगर बढ़ई मार दिए गए तो चाकू में हैंडिल कौन बनाएगा ? लेकिन सवाल यह भी है कि किसी को मारने की ज़रूरत ही क्या है? बीच-बीच में एक दो मज़ाकिया कहानियाँ भी डालनी पड़ेंगी। जैसे, एक इति...कार को अपने बगीचे में खुदाई करते वक्त दो पुराने सिक्के मिले, जो किसी न किसी प्राचीन सभ्यता के बीच की कड़ी थे; लेकिन, यह क्या हुआ कि साफ करने पर वे पुराने सिक्के न होकर दो पुराने बटन निकले...नहीं, यह कहानी बेकार-सी है। बेवकूफ़ी की कहानी ! अब मैं क्या करूँ? ऐसी किताब कहाँ से लाऊँ जिसमें इतिहास की मज़ाकियाँ बातें लिखीं हो? किसी अखबार से लिखकर पूछूँ, ‘सर, आप या आपके लाखों पाठकों में से कोई मुझे किसी ऐसी किताब का नाम बता सकता है? घंटे भर तक चन्द्रन ऐसी बातें लिखता रहा, फिर रुक गया। फिर वह अपना अब तक का लिखा सब बड़े ध्यान से पढ़ने लगा। उसे अचानक यह ज्ञान हुआ कि जब कागज़ पर लिखने के लिए कलम पकड़ता है, तब उसका दिमाग़ बड़ी तेज़ी से काम करने लगता है, लेकिन जब वह बैठकर सिर नीचा करके कुछ सोचने की कोशिश करता है, तब वह एकदम ठप हो जाता है। उसे लगा कि उसे यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात ज्ञात हुई है।

उसने कुर्सी सरकाई, उठकर कोट पहना और बाहर निकल गया। दो घंटे इधर-उधर घूमने के बाद जब वापस लौटा, तब तक उसे अपने विषय के समर्थन में केवल एक सही-सा तर्क प्राप्त हुआ था–कि, उनका क़त्ल करने के बाद जब वैज्ञानिकों, कवियों और राजनेताओं का क़त्ल किया जाएगा, तब घटना को गलत ढंग से पेश करने के लिए वे वहाँ नहीं रहेंगे। यह तर्क उसे बहुत वज़नदार लग रहा था, उसे लगा कि इसे सुनकर सारे श्रोता हँस-हँसकर लोट-पोट होने लगेंगे...

चन्द्रन ने कॉलेज का नोटिस बोर्ड देखने में पूरा आधा घंटा बिताया। एक नोटिस में उसका नाम लिखा था। इसे पढ़कर वह गम्भीर चेहरा लिए कारीडोर में इधर-उधर घूमा, फिर क्लास में दाखिल हो गया। प्रोफ़ेसर का लेक्चर सुनने में और उसके नोट्स लेने में उसका ध्यान नहीं लग रहा था। घंटा खत्म हुआ और प्रोफ़ेसर क्लास से बाहर चला गया, तब उसने अपनी कलम का ढक्कन बन्द किया, और इतिहासकारों के क़त्ल के विषय में फिर सोचना शुरू कर दिया। उसने इसका विश्लेषण लिखना शुरू किया ही था, कि तीन बेंचें आगे बैठे रामू ने ज़ोर से कहा, ‘‘जब तक ब्राउन आते नहीं, हम बाहर का एक चक्कर लगा आयें?’’

‘‘नहीं।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘तुम चाहो तो घूम आओ’’ चन्द्रन ने तल्खी से कहा।

‘‘हाँ, और तुम यहाँ बैठे ऊँघते रहो,’’ यह कहकर रामू तेज़ी से बाहर निकल गया। चन्द्रन को बड़ी शान्ति महसूस हुई और वह भाषण के विषय पर फिर से ध्यान लगाने की कोशिश करने ही लगा था, कि किसी ने पीछे आकर कहा, कि मुझे क्लास के अपने नोट्स दे देना, किसी और ने कुछ और मांग रख दी और किसी और ने कोई एकदम नई बात ही छेड़ दी। यह तब तक ऐसे ही चलता रहा, जब तक कॉलेज के प्रिंसिपल, प्रोफ़ेसर ब्राउन बगल में बहुत सी किताबें दबाये क्लास में नहीं घुस आए। ग्रीक ड्रामा का यह पीरियड बहुत महत्त्वपूर्ण था, और चन्द्रन को एक बार फिर अपने भाषण के विषय से दिमाग़ को अलग करना पड़ा।

पीरियड खत्म होते ही चन्द्रन ने लायब्रेरी का रुख किया और सूत्रीपत्र को ध्यान से देखने लगा। उसने बहुत सी अलमारियाँ खोलीं और किताबें निकाल-निकाल देखीं, लेकिन किसी में से भी उसे अपने काम की कोई चीज़ नहीं मिली। भाषण का विषय भी एकदम अनोखा था, इतिहास पर तो वहाँ ढेरों किताबें थीं लेकिन इतिहासकारों के क़त्लेआम पर कहीं ज़रा सी भी सामग्री नहीं थी।

तीन बजे वह घर लौट आया। भाषण के लिए अभी दो घंटे बाक़ी थे। उसने अपनी माँ से कहा, ‘‘पाँच बजे मुझे भाषण-प्रतियोगिता में हिस्सा लेना है। तैयारी करने अपने कमरे में जा रहा हूँ। कोई दरवाजा न खटखटाये और न खिड़की के पास शोर करे।’’

साढ़े चार बजे वह कमरे से बाहर निकला, हॉल में तेज़ी से कई चक्कर लगाये, फिर बाथरूम का दरवाज़ा धक्का देकर खोला, मुँह को पानी छिड़ककर धोया, और कमरे में वापस घुस गया। फिर सावधानी से बाल काढ़े चाकलेटी रंग का ट्रवीड का कोट पहना–जिसे वह विशेष अवसरों के लिए सँभालकर रखता था–और फुर्ती से घर से बाहर निकल गया।

सेक्रेटरी नटेसन ने, जो यूनियन के बरांडे में पसीने से तर लोगों का इन्तज़ार कर रहा था, चन्द्रन को देखते ही आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ा और हॉल में ले जाकर मंच के सामने वक्ताओं के लिए विशेष रूप से रखी कुशन लगी कुर्सियों में से एक पर बिठा दिया। चन्द्रन ने रूमाल निकालकर चेहरा पोंछा और चारों तरफ़ नज़र डाली। हॉल में करीब एक हज़ार लोगों के बैठने की जगह थी, और वहाँ ज़्यादा भीड़ नज़र नहीं आ रही थी। पचास के करीब लड़के छोटी क्लासों के और बीस फाइनल ईयर के थे। नटेसन ने उसके कंधे पर झुककर धीरे से कहा, ‘‘काफ़ी लोग हैं!’’ यूनियन के भाषणों के लिए इतने श्रोता काफी ज़्यादा माने जाते थे।

बाहर घर-घर करती एक गाड़ी आकर रुकी। सेक्रेटरी दौड़कर हॉल से बाहर निकला, और क्षण-भर बाद चेहरे पर हल्की-सी मुसकान लिए, अपने पीछे प्रोफ़ेसर ब्राउन को लेकर लौटा। वह उन्हें मंच पर रखी ऊँची कुर्सी तक ले गया, और उनके बैठते ही धीरे से बोला, ‘‘अब कार्यवाही आरम्भ करें।’’ प्रोफ़ेसर ब्राउन तुरन्त उठ खड़े हुए और घोषणा की, ‘‘मैं श्री एच. वी. चन्द्रन को विषय प्रस्तुत करने के लिए आमन्त्रित करता हूँ।’’ यह कहकर वे एकदम बैठ गए।

श्रोताओं ने तालियाँ बजाईं। चन्द्रन उठा, मेज़ पर रखे पेपरवेट पर नज़र केन्द्रित की और बोलना आरम्भ किया, ‘‘स्पीकर महोदय, मुझे विश्वास है, कि यह सदन, जो अपनी सहज बुद्धि और गम्भीरता के लिए विख्यात है, मेरा इस वक्तव्य के लिए पूरा समर्थन करेगा, कि दुनिया के इतिहासकारों का क़त्ल सबसे पहले किया जाना चाहिए। मैं इतिहास का ही विद्यार्थी हूँ, इसलिए इसका महत्व जानता हूँ...।

बीस मिनट तक वह इसी प्रकार धाराप्रवाह बोलता रहा, और बीच-बीच में श्रोता जब भी उसकी किसी चटपटी बात पर तालियाँ बजाते, उसका उत्साह भी एकदम बढ़ जाता।

उसके बाद विरोध पक्ष का मुख्य वक्ता खड़ा हुआ, और वह भी बीस मिनट तक इसी प्रकार बोलता रहा। चन्द्रन को यह देखकर कुछ निराशा हुई कि श्रोताओं ने उसके भाषण पर भी उसी तरह तालिया बजाईं। इसके बाद दोनों मुख्य वक्ताओं के समर्थक दस-दस मिनट तक बोले और ज़्यादातर उन्हीं बातों को दोहराते रहे जो उनके प्रमुख वक्ता कह गये थे। वक्ता जब भी बोलने खड़ा होता, हॉल में शोर मचने लगता, और प्रिंसिपल साहब घंटी बजाकर ज़ोर से चिल्लाते, ‘‘आर्डर! आर्डर!’’

चन्द्रन को बोरियत हो रही थी। अब चूँकि उसका अपना भाषण खत्म हो गया था, उसे लगने लगा था कि और लोग बेकार की बकवास कर रहे हैं। वह हॉल में चारों तरफ़ नज़रें दौड़ाने लगा। फिर मंच पर बैठे स्पीकर पर नज़र डाली। प्रोफ़ेसर ब्राउन के लाल चेहरे को देर तक देखता रहा। उसने सोचा, कि यहाँ तो यह भाषण सुनता और घंटी बजाता नज़र आ रहा है, लेकिन वास्तव में इसका दिमाग़ यहाँ नहीं है, वह इंग्लिश क्लब के टेनिस कोर्ट और ताश खेलने की मेज़ पर लगा है–यहाँ यह हमारे लिए प्यार के कारण नहीं बैठा है, सिर्फ दिखावे के लिए बैठा है। सारे यूरोपियन ऐसे ही हैं। ये सब महीने में हज़ार* रुपये की पगार जेब में डालते हैं लेकिन भारतीयों के लिए सच्चे मन से कुछ भी नहीं करते। यह पैसा इन्हें इंग्लिश क्लब में मौज करने के लिए दिया जाता है। और ये, अपने क्लबों में भारतीयों को क्यों नहीं शामिल होने देते? ज़बरदस्त रंग भेद है यह! अगर कभी सत्ता मेरे हाथ में आई तो पहला काम मैं यही करूँगा कि इनके अलग क्लब खत्म कर दूँगा और भारतीयों के साथ साझा सबके क्लब ही चलने दूँगा। हाँ, ठीक है कि अपने घरों से हज़ारों मील दूर काम कर रहे इन बेचारे शासकों को शाम के वक्त खेलने के लिए भी कुछ समय दे दिया जाए! लेकिन, इन्हें यहाँ बुलाया किसने था?

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*जो अंग्रेज़ों के शासन-काल में बहुत रकम थी–अनुवादक

वह इस तरह अकेला यह सब सोचने में लगा था, कि प्रोफेसर ब्राउन की आवाज़ उसे सुनाई दी : ‘‘विरोध पक्ष के मुख्य वक्ता के अलावा सदन के सदस्यों ने इस विषय पर अपना मत प्रस्तुत कर दिया है, अब मैं विषय के मुख्य वक्ता श्री चन्द्रन को प्रतिपक्ष का उत्तर देने के लिए आमंत्रित करता हूँ...इसके बाद मतदान होगा।

चन्द्रन ने चौंककर सिर उठाया, कागज़ पर तेज़ी से एक-दो शब्द खरोंचे, और खड़े होकर बोलना शुरू किया, ‘‘स्पीकर महोदय और सदन के माननीय सदस्यगण, मैंने बड़े ध्यानपूर्वक माननीय सदस्यों के इस विषय पर प्रस्तुत विचार सुने हैं। इससे विषय-प्रवर्तक के रूप में मेरा कार्य बहुत आसान हो गया है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस विषय पर होने वाले मतदान में...।’’ इस प्रकार वह तब तक बिना रुके बोलता रहा जब तक स्पीकर ने घंटी नहीं बजा दी। लेकिन खत्म करते हुए उसने उस प्रोफ़ेसर की कहानी भी सुना डाली जो सिक्कों के धोखे में बटन खोद लाया था।

इसके बाद मतदान हुआ और सदन ने ज़बरदस्त बहुमत से इतिहासकारों के तुरन्त क़त्लेआम का समर्थन कर दिया। चन्द्रन को जीतने की अपार प्रसन्नता हुई। उसने बड़े नाटकीय ढंग से मेज़ के आर-पार अपना हाथ फैलाया और विपक्ष के मुख्य वक्ता से उसे झकझोर कर मिलाया।

अब प्रोफ़ेसर ब्राउन उठे और उन्होंने कहा कि तकनीकी दृष्टि से तो उन्हें बोलना ही नहीं चाहिए–लेकिन फिर उन्होंने पांच मिनट तक यह बताया कि इतिहासकारों का एकदम क्यों क़त्ल कर दिया जाना चाहिए, और इसके बाद इसी तरह पूरे पाँच मिनट तक यह भी बताया कि उनकी पूजा क्यों की जानी चाहिए। उन्होंने क़त्ल के पक्ष में रखे गए शानदार तर्कों की प्रशंसा की और इसी तरह इन्हें काटने वाले तर्कों को भी बहुत ज़ोरदार और उतना ही शानदार घोषित किया।

इसके बाद जैसे ही वे बैठे, सेक्रेटरी उछलकर माइक के सामने जा खड़ा हुआ और धन्यवाद के शब्द बुदबुदाने लगा–लेकिन प्रस्ताव पूरा होने से पहले ही हॉल खाली हो चुका था और उसमें शान्ति छा गई थी।

रोशनियाँ बुझने लगीं तो चन्द्रन हॉल के दरवाज़े पर कुछ देर ठिठका; थका-माँदा नटेसन मेज़ से पेपरवेट उठाकर उस पर बिछी चादर हटा रहा था। उन्हें स्टोर में रखकर वह बाहर निकला तो चन्द्रन ने पूछा, ‘‘मेरी तरफ चलना है?’’

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