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कबीर दोहावली

नीलोत्पल

प्रकाशक : ग्रंथ अकादमी प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8291
आईएसबीएन :9789381063132

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संत कबीर की जीवनी और काव्य-रचना के विभिन्न पहलू

Kabir Dohavali - A Hindi Book - by Nilotpal

सामान्य तरीके से जन्म लेकर और एक अति सामान्य परिवार में पलकर कैसे महानता के शीर्षक को छुआ जा सकता है, यह महात्मा कबीर के आचार, व्यवहार, व्यक्तित्व और कृतित्व से सीखा जा सकता है। सन् 1938 में जनमें कबीर ने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों, धार्मिक भेदभावों, असमानता एवं जातिवाद आदि विकारों को दूर करने का भरसक प्रयास किया और इसमें उन्हें आंशिक सफालता भी मिली। तभी तो अपना परिचय वे सार्वभौमिक रूप में देते हुए कहते हैं-

जाति हमारी आत्मा, प्राण हमारा नाम।
अलख हमारा इष्ट, गगन हमारा ग्राम।।

इस प्रकार, अपने दोहों के माध्यम से उन्होंने समाज के बीच आपसी सौहार्द और विश्वास बढ़ाने का काम किया। कबीर ने कोई पंथ नहीं चलाया, कोई मार्ग नहीं बनाया; बस लोगों से इतना कहा कि वे अपने विवेक से अपने अंतर्मन में झाँकें और अपने अंतर के जीवात्म को पहचानकर सबके साथ बराबर का व्यवहार करें; क्योंकि हर प्राणी के अंदर जीवात्म के स्तर पर कोई ऊदभाव नहीं होता। सबका जीवात्म एक समान है, फिर सामाजिक स्तर पर आपसी भेदभाव क्यों हो ?

कबीर मूर्ति या पत्थर को पूजने की अपेक्षा अंतर में बसे प्रभु की भक्ति करने पर बल देते थे। उन्होंने मानसिक पूजा, सत्यनिष्ठा, निर्मल मन, प्रेमी व्यक्तित्व, सदाचार, नैतिकता, सरलता, मूल्यवादी जीवन-दर्शन, समता-मूलक समाज, धार्मिक सहिष्णुता व उदारता तथा मानवीय जीवन-दृष्टि का संदेश दिया। उनकी अहिंसक प्रवृत्ति के कारण ही उनके मुसलिम माता-पिता को मांस आदि खाना छोड़ना पड़ा था।

कबीर ने सदैव निष्पक्ष होकर सत्य-पथ का अनुगमन किया और शाश्वत मानव-मूल्यों पर जोर दिया। उन्होंने चमत्कारों, अंधविश्वास, पाखंड और अवैज्ञानिक अवधारणाओं का कभी समर्थन नहीं किया। उन्होंने कर्म-कर्तव्य की सदा पूजा की और अंत तक एक कामगार का जीवन जीया।

14वीं सदी में कबीर दलितों के सबसे बड़े मसीहा बनकर उभरे और उच्च वर्गों के शोषण के विरुद्ध उन्हें जागरूक करते रहे। वह निरंतर घूम-घूमकर जन-जागरण चलाते और लोगों में क्रांति फैलाते रहते थे। अपने काव्य के माध्यम से वे लोगों को सचेत भी करते रहते थे, यथा-

कबीर वा दिन याद कर, पग ऊपर तल सीस।
मृत मंडल में आयके, बिसरि गया जगदीश।।

और

कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेपीर।।

कबीर के जन्म और जाति के संबंध में विद्वानों में अनेक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन सभी एकमत से उन्हें बड़ा समाज-सुधारक और महात्मा मानते हैं। ‘रेमैनी’, ‘सबद’ और ‘साखी’ में उन्होंने अंधविश्वास, वेदांत तत्त्व, धार्मिक पाखंड, मिथ्याचार, संसार की क्षणभंगुरता, हृदय की शुद्धि, माया, छुआछूत आदि अनेक प्रसंगों पर बड़ी मार्मिक उक्तियाँ कही हैं। उनकी भाषा देशज और ठेठ होने पर भी बहुत प्रभावी और स्पष्टवादितापूर्ण है। शांतिमय जीवन के समर्थक कबीर अहिंसा, सत्य, सदाचार, दया, करुणा, प्रेम आदि सद्गुणों के उपासक थे। वे सांप्रदायिक एकता के स्थापक, जनता के गुरु, मार्गदर्शक, साथी और मित्र थे।

महात्मा गांधी भी कबीर के बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने भी दलितों की सेवा, अहिंसा, सत्य, सदाचार, दया, करुणा आदि सद्गुण उन्हीं के चरित्र से ग्रहण किए।

महात्मा कबीर आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपनी कालजयी वाणी में वे युगों-युगों तक हमारे सामने परिलक्षित होते रहेंगे। उनकी वाणी का अनुसरण करके हम अपना वर्तमान ही नहीं, भविष्य और मृत्यु बाद के काल को भी सँवार सकते हैं।
इस पुस्तक में, वर्तमान प्रासंगिकता को ध्यान में रखकर ही, संत कबीर की जीवनी और काव्य-रचना के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है, जिससे कि पाठकों को कबीर को समझने और उनके दरशाए मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिल सके।

नीलोत्पल

हिंदी साहित्य के गंभीर अध्येता, समसामयिक विषयों पर चिंतन-लेखन। पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख प्रकाशित। हिंदी व संस्कृत विद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा देते हैं।


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