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उपासना एवं आरती >> हनुमान तंत्र साधना

हनुमान तंत्र साधना

राधाकृष्ण श्रीमाली

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8869
आईएसबीएन :8171829929

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हनुमान उपासना : युग की प्रासंगिकता

Ek Break Ke Baad

हनुमान उपासना : युग की प्रासंगिकता

दुःखों, दुश्प्रवृत्तियों, कष्टों से घिरा आजका मानव यदि इससे अपना पिंड छुड़ाने का मानस भी बना ले, तो सही राह व मार्गदर्शन के अभाव में इनसे दूर जाने के स्थान पर स्वयं को इनके चक्रव्यूह में बंधा प्रतीत करता है। कहने को हम आज इक्कीसवीं सदी अर्थात् विज्ञान युग में जी रहे हैं परंतु स्वयं की अंतरात्मा में झांक कर देखने या अंतर्मन से प्रश्न करने पर हम बारम्बार यही उत्तर पाते हैं कि ना तो हमने विकास की यात्रा की है और न ही हम प्रगति पथ पर अग्रसर हैं। अपितु यहां तक कहना मैं तो अतिशयोक्ति नहीं मानूंगा कि हम पतन की गर्त में जा रहे हैं - क्योंकि पीड़ित मानवता, अबला नारी, जो दहेज प्रताड़ना और बलात्कार का शिकार हो रही है, युवकों का व्यभिचारी आचरण, दुष्प्रवृत्तियों का महाजाल, काम व अर्थ को अधिक महत्व देना, भौतिक सुखों की प्राप्ति की ओर अंधी दौड़। ये सब और इतना बहुत कुछ जिसकी गिनती नहीं की जा सकती - बाधक है, उस मनुष्य के निर्माण में जिसकी उत्पत्ति ईश्वर ने पृथ्वी पर शांत वातावरण, मर्यादित आचरण व जग संचालन के लिये इस हेतु की थी कि वह ईश-वंदना व प्रभु-स्मरण कर ईश्वर को जाने। इन सभी में आज का मानव स्पष्ट रूप से असमर्थ और असफल है।

ये सभी समस्यायें अन्योनाश्रित हैं और मूल रुप से हमारे आचरण से जुड़ी हैं। हम सभी समस्याओं से स्थाई रूप से मुक्ति पाकर ऐसा जीवन व्यतीत कर सकते हैं, जो दीर्घायु, आध्यात्मिक, ईश्वर-निष्ठ, ऐश्वर्य व वैभव व सुख समृद्धि से परिपूर्ण हो। इन सभी आचरणों का मार्ग प्रशस्त करती है - हनुमान उपासना व साधना।

प्रथम दृष्टि में भले ही दुष्कर प्रतीत होता हो कि ऐसा संभव नही कि सभी दुःखों व कष्टों से इतनी सरलता से छूटा जा सकता है, परंतु यह संभव व सत्य है कि पवनपुत्र की कृपादृष्टि जिस साधक पर पड़ी, मानों वह भव सागर से तर गया। हमारे वेद-पुराण, उपनिषद, ऐसे अकाट्य प्रमाणों से भरे पड़े हैं जिनसे ईश-साधना के द्वारा दुःखों से मुक्ति का रास्ता बतलाया गया है। इन ईश-साधनाओं में प्रमुख स्थान रखती है - हनुमान साधना जो स्वये में यंत्र, तंत्र, मंत्र आदि का अपार भंडार लिये है, आवश्यकता तो है सिर्फ इस बात की है कि इस अतुल भंडार का प्रयोग पूरे मनोभाव व सद्-उद्देश्यों के लिये किया जाय।

पुस्तक में इन सिद्धियों की प्रयोग विधि विस्तारपूर्वक इस उद्देश्य से दी गई है कि सुधी-पाठक लाभान्वित हो सकें।

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