लोगों की राय

सामाजिक विमर्श >> यूरोप के इतिहास की प्रभाव शक्तियाँ

यूरोप के इतिहास की प्रभाव शक्तियाँ

रघुवंश

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :420
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9320
आईएसबीएन :9788180316548

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

281 पाठक हैं

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यूरोप के इतिहास की प्रभाव-शक्तियां हमारा विश्व आज जिन स्थितियों से गुजर रहा है, वे सारी स्थितियाँ केवल आर्थिक और राजनीतिक ही नहीं, वरन् सांस्कृतिक चिन्ता का विषय भी हैं। भले ही यह कहा जा रहा हो या मान लिया गया हो कि सोवियत रूस के पतन के बाद, विश्व अब द्वि-ध्रुवीय नहीं रह गया है, किन्तु अपने वर्तमान को समझने और विभिन्न भटकावों के बीच से सही मार्ग खोजने के लिए उन प्रभाव-शक्तियों का अवलोकन-प्रत्यावलोकन करना आवश्यक है, जिनका एक सुदीर्घ इतिहास है।

विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं से लेकर आज तक मानव-सभ्यता के विकास के जो भी चरण रहे हैं, उनमें कहाँ-कहाँ कौन-कौन-सी प्रभाव-शक्तियाँ परस्पर सहयोग की भूमिका में रहीं, और कौन-कौन प्रतिस्पर्द्धा या प्रतियोगिता की भूमिका में रहीं, यह हम समझते चलें तो सम्भव है, भविष्य के लिए अपना सही मार्ग चुनने में हमारी सहायता करनेवाली प्रेरणाएँ हमें अपने वर्तमान में मिल सकें। विभिन्न समाजों की अपनी-अपनी संस्कृतियों की परिधि में, राजसत्ताओं-धर्मतंत्रों ने (और आगे चलकर विकसित होनेवाली लोकतंत्रात्मक सत्ताओं ने भी) किन-किन तत्त्वों या वर्गों को प्रश्रय दिया और प्रश्रय-प्राप्त तत्त्वों या वर्गों ने समाज को कितनी गति दी या कितने अवरोध उपस्थित किए, यह सब लक्षित करने के मूल में इस लेखक का उद्देश्य यह रहा है कि मानवीय मूल्यों के ह्रास और विकास, दोनों के वस्तुगत पक्ष सामने लाए जा सकें जिससे मनुष्य - व्यक्ति और समाज - दोनों रूपों में अपने दायित्व और अपने स्वातंत्रय के अविच्छिन्न सम्बन्धों को आत्मसात् कर सके।

- भूमिका से

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book