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सपनों की होम डिलीवरी

ममता कालिया

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9441
आईएसबीएन :9789352211012

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

सपनों की होम डिलीवरी नए जमाने के करवट बदलते रिश्तों को केंद्र में रखकर लिखा गया उपन्यास है ! रिश्ता चाहे पति-पत्नी का हो, माता-पिता और संतान का हो या प्रेमी-प्रेमिका का; ईमानदारी से देखें तो हर रिश्ता नए वक्त के साथ ताल बिठाने की कोशिश कर रहा है ! दोष किसी का नहीं है, शायद हर युग अपने सामाजिक संजाल को ऐसे ही बदलता होगा ! वरिष्ठ हिंदी कथाकार ममता कालिया भी इस उपन्यास में दोषी किसी को नहीं ठहरातीं ! न किसी पात्र का पक्ष लेती हैं, न किसी को आरोपों के कठघरे में खड़ा करती हैं !

सिर्फ उनकी कहानी बयान करती हैं जो एक तरफ अपनी निजी पहचान को तो दूसरी तरफ रिश्तों की ऊष्मा को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं ! शायद यही वह मूल संघर्ष है जिसमें से आज हम सबको गुजरना पढ़ रहा है ! एक तरफ वयस्क होती वैयक्तिकता है जिसे अपना निजी स्पेस चाहिए और दूसरी तरफ समाज के पुराने सांचे हैं जिनमे यह चीज अंट नहीं पाती ! नतीजा भीतर-बाहर की टूट-फूट और यंत्रणा !

उपन्यास की नायिका रुचि एक असफल विवाह से निकलकर अपनी खुद की पहचान अर्जित करती है ! दूसरी तरफ सर्वेश है ! वह भी अपने पहले विवाह से बाहर आ चुका है ! दोनों का अपना एक-एक बच्चा भी है ! और संयोग कि रुचि का अपना बेटा पारिवारिक टूटन के कारण जिस खतरनाक रास्ते पर जा रहा है उसी रास्ते पर चलता हुआ सर्वेश का बेटा पहले ही जीवन से हाथ धो चूका है ! यही बिंदु इन दोनों के निजी स्पेस को स्थायी रूप से जोड़कर एक नया, बड़ा स्पेस बनाता है ! अत्यन्त पठनीय और सारगर्भित उपन्यास !

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