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एप्पल आई ट्यू्न्स अथवा आई बुक्स पर गुरुदत्त के उपन्यास

Stories on Apple Itunes or Ibooks by Premchand - एप्पल आई ट्यून्स अथवा आई बुक्स पर उपलब्ध गुरुदत्त के उपन्यास

एप्पल आई ट्यून्स अथवा आई बुक्स पर उपलब्ध हिन्दी पुस्तकें

हिन्दी साहित्य की साम्रगी पिछले कुछ वर्षों से ई पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है। पुस्तक.आर्ग सभी प्रकाशकों से अनुबन्ध करके उनकी साम्रगी ई पुस्तकों के रूप में पाठकों को उपलब्ध करने की दिशा में कार्यरत है। कुछ उपलब्ध पुस्तकों के वेब लिंक यहाँ दिये जा रहे हैं। एप्पल आई ट्यून्स अथवा आई बुक्स पर उपलब्ध पुस्तकें आप अपने एप्पल कम्प्यूटर अथवा आई फोन, आई पैड आदि पर पढ़ सकते हैं।

गुरुदत्त की मानवीय उत्थान की कहानियाँ

Avtaran (Hindi Novel) - Gurudutt अवतरण - गुरुदत्त अवतरण
गुरुदत्त
पृष्ठ 200
मूल्य $ 4.99

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जाये तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है। एक बार हमारे मुहल्ले के एक मन्दिर में महाभारत की कथा रखायी गयी। यह वे दिन थे, जब आर्यसमाज और सनातनधर्म सभा में शास्त्रार्थों की धूम थी। मुहल्ले के कुछ सनातनधर्मी युवको में धर्म ने जोश मारा और वे हिन्दुओं की प्रसिद्ध धर्म-पुस्तक महाभारत की कथा कराने लगे

आशा निराशा (Hindi Novel) आशा निराशा
गुरुदत्त
पृष्ठ 224
मूल्य $ 4.99

‘‘माता जी! पिताजी क्या काम करते हैं?’’ एक सात-आठ वर्ष का बालक अपनी माँ से पूछ रहा था। माँ जानती तो थी कि उसका पति क्या काम करता है, परन्तु हिन्दुस्तान की अवस्था का विचार कर वह अपने पुत्र को बताना नहीं चाहती थी कि उसका पिता उस सरकारी मशीन का एक पुर्जा है, जो देश को विदेशी हितों पर निछावर कर रही है। अतः उसने कह दिया, ‘‘मैं नहीं जानती। यह तुम उनसे ही पूछना।’’ माँ की अनभिज्ञता पर लड़के ने बताया, ‘‘माँ! मैं जानता हूं। एक बड़ा सा मकान है। उसमें सैकड़ों लोग काम करते हैं। सब के मुखों पर पट्टी बंधी हुई रहती है। उनकी आंखें देखती तो हैं, परन्तु सब रंगदार चश्मा पहने हैं।

Do Bhadra Purush (Hindi Novel) - दो भद्र पुरुष (Hindi Novel) दो भद्र पुरुष (Hindi Novel)
गुरुदत्त
पृष्ठ 143
मूल्य $ 4.99

एक लखपति था और दूसरा मज़दूर। एक ठेकेदार था, दूसरा स्कूल-मास्टर। एक नई दिल्ली में बारहखम्भा रोड पर दुमंजिली कोठी पर रहता था, दूसरा बाज़ार सीताराम के कूचा पातीराम की अँधेरी गली के अँधेरे मकान में। एक मोटर में बैठकर काम पर जाता था तो दूसरा बाइसिकल पर। एक उत्तम विलायती वस्त्र धारण करता था दूसरा खद्दर का पायज़ामा, कुरता, जाकेट, और टोपी।

Dharti Aur Dhan (Hindi Novel) - धरती और धन (Hindi Novel) धरती और धन (Hindi Novel)
गुरुदत्त
पृष्ठ 344
मूल्य $ 4.99

बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता। इस विषय पर एक अनुपम और रोचक उपन्यास।

Nastik (Hindi Novel) - नास्तिक (Hindi Novel) नास्तिक (Hindi Novel)
गुरुदत्त
पृष्ठ 265
मूल्य $ 4.99

खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है

Parampara (Hindi) - परम्परा (Hindi) परम्परा (Hindi Novel)
गुरुदत्त
पृष्ठ 220
मूल्य $ 4.99

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर यह उपन्यास लिखा गया है। वैसे तो श्री राम के जीवन पर सैकड़ों ही नहीं, सहस्रों रचनाएं लिखी जा चुकी हैं, इस पर भी जैसा कि कहते हैं– हरि अनन्त हरि कथा अनन्त। भगवान राम परमेश्वर का साक्षात अवतार थे अथवा नहीं, इस विषय पर कुछ न कहते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवन में जो कार्य सम्पन्न किया वह उनको एक अतिश्रेष्ठ मानव पद पर बैठा देता है। लाखों, करोड़ों लोगों के आदर्श पुरुष तो वह हैं ही। और भारत वर्ष में ही नहीं बीसियों अन्य देशों में उनको इस रूप में पूजा जाता है। राम कथा किसी न किसी रूप में कई देशों में प्रचलित है।

Panigrahan (Hindi) पाणिग्रहण (Hindi)
गुरुदत्त
पृष्ठ 304
मूल्य $ 4.99

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत के प्रभाव के कारण प्रतीची विचारों से प्रभावित इन्द्रनारायण तिवारी की मानसिक अवस्था एक समस्या बनी रहती थी। इन्द्रनारायण के पिता रामाधार तिवारी जिला उन्नाव के एक छोटे से गाँव दुरैया में पुरोहिताई करते थे। दुर्गा, चंडी-पाठ, भागवत-पारायण, रामायणादि की कथा तो पुरोहितजी का व्यवसाय था। इसके अतिरिक्त घर पर भी पूजा पाठ होता रहता था। पुरोहितजी के घर के साथ संयुक्त रघुनाथजी का मन्दिर था और उसमें भी कथा-कीर्तन चला करता था। इन्द्रनारायण के ये बचपन के संस्कार थे।

Pragatisheel (Hindi) प्रगतिशील (Hindi)
गुरुदत्त
पृष्ठ 120
मूल्य $ 4.99

वर्तमान युग में ‘प्रगतिशील’ एक पारिभाषिक शब्द हो गया है। इसका अर्थ है योरप के सोलहवीं शताब्दी और उसके परवर्ती मीमांसकों द्वारा बताए हुए मार्ग का अनुकरण करने वाला। इनमें से अधिकांश मीमांसक अनात्मवादी थे। इनके अनात्मवाद के व्यापक प्रचार का कारण था ईसाईमत का अनर्गल आत्मवाद, जो केवल निष्ठा पर आधारित था। बुद्धिवाद के सम्मुख वह स्थिर नहीं रह सका। ईसाई मतावलम्बियों की अन्ध-निष्ठा ने प्राचीन यूनानी जीवन मीमांसा का विनाश कर दिया था। यूनानी जीवन मीमांसा में अनात्मवाद का विरोध करने की क्षमता थी। उस मीमांसा का संक्षिप्त स्वरूप सुकरात के इन शब्दों में दिखाई देगा, ‘‘सदाचार के अनुवर्तन (यम-नियम-पालन) से सम्यक्ज्ञान उत्पन्न होता है। वह ज्ञान साधारणमनुष्य में उत्पन्न होने वाले सामान्य ज्ञान से भिन्न होता है...सम्यक्ज्ञान उत्कृष्ट गुणयुक्त है। व्यापक विचारों (विवेक) से उसकी उत्पत्ति होती है।’’

Prarabdh_Aur_Purusharth - प्रारब्ध और पुरुषार्थ - गुरुदत्त प्रारब्ध और पुरुषार्थ
गुरुदत्त
पृष्ठ 160
मूल्य $ 4.99

प्रारब्ध है पूर्व जन्म के कर्मों का फल। फल तो भोगना ही पड़ता है, परन्तु पुरुषार्थ से उसकी तीव्रता को कम किया जा सकता है अथवा यह भी कह सकते हैं कि उसको सहन करने की शक्ति बढ़ाई जा सकती है। ‘‘प्रारब्ध और पुरुषार्थ’’ का यही कथानक है। अकबर के जीवन के एक पृष्ठ को आधार बनाकर रचा गया अत्यन्त रोचक उपन्यास। मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है। इस कारण भाग्य (प्रारब्ध) के विरुद्ध जब वह पुरुषार्थ करता है तो उसके परिणाम (शुभ अथवा अशुभ) का उत्तरदायित्व उसका अपना होना है। तब वह भाग्य पर दोषारोपण नहीं कर सकता। ‘प्रारब्ध और पुरुषार्थ’ का यही कथानक है।

Banvasi (Hindi Novel) बनवासी (Hindi Novel)
गुरुदत्त
पृष्ठ 134
मूल्य $ 4.99

‘वनवासी’ का अभिप्राय उस वनवासी से नहीं है जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम की भाँति वन में वास करने के लिए चला जाता है अथवा अपना घर बार छोड़कर संन्यास ग्रहण कर वनों में जाकर तपस्या करता है। ‘वनवासी’ ऐसी वन्य जाति की कहानी है जो आदिकाल से पूर्वांचल के वनों में वास करते आ रहे हैं। जैसाकि हमने कहा है, उनके अपने रीति-रिवाज हैं, परम्परायें हैं। वे बड़े ही सरल चित्त प्राणी हैं। जिस काल की यह कहानी है उस काल में उनमें इतना अन्तर अवश्य आ गया था कि अपनी उपज को वे निकट के नगरों और उपनगरों में ले जाकर बेचने लगे थे। इससे वे अपनी उन आवश्यकताओं की पूर्ति करने लगे थे जो शहरी सभ्यता के सम्पर्क में आकर उन्होंने अपना ली थी। यहीं से उनके पतन की कहानी भी आरम्भ होती है

Yuddh Aur Shanti 1 (Hindi Novel) - युद्ध और शान्ति 1 (Hindi Novel) युद्ध और शान्ति 1 (Hindi Novel)
गुरुदत्त
पृष्ठ 272
मूल्य $ 4.99

परमात्मा ने जब मानव की सृष्टि की तो उसको गुण, कर्म तथा स्वभाव से चार प्रकार का बनाया। ये वर्ण भारतीय शब्द कोष में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र नाम से जाने जाते हैं। शासन करना और देश की रक्षा करना क्षत्रियों का कार्य है। ब्राह्मण स्वभाववश क्षत्रिय का कार्य करने के अयोग्य होते हैं। ब्राह्मण का कार्य विद्या का विस्तार करना है। मानव समाज में ये दोनों वर्ग श्रेष्ठ माने गये हैं। वर्तमान युग में ब्राह्मण और क्षत्रिय, मानव समाज के सेवक मात्र रह गये हैं। समाज का प्रतिनिधि राज्य है और राज्य स्वामी है क्षत्रिय वर्ग का भी और ब्राह्मण वर्ग का भी। शूद्र उस वर्ग का नाम है जो अपने स्वामी कि आज्ञा पर कार्य करे और उस कार्य के भले-बुरे परिणाम का उत्तरदायी न हो। आज उत्तरदायी राज्य है। ब्राह्मण (अध्यापक वर्ग) और क्षत्रिय (सैनिक) वर्ग राज्य की आज्ञा का पालन करते हुए भले-बुरे परिणाम के उत्तरदायी नहीं हैं। इसी कारण वे शूद्र वृत्ति के लोग बन गये हैं। यह बात भारत-चीन के सीमावर्ती झगड़े से और भी स्पष्ट हो गई है। मंत्रिमण्डल जिसमें से एक भी व्यक्ति, कभी किसी सेना कार्य में नहीं रहा, १९६२ की पराजय तथा १९५२-१९६२ तक के पूर्ण पीछे हटने के कार्य का उत्तरदायी है और राज्य-संचालन में क्षत्रियों (सेना) का तथा ब्राह्मणों (अध्यापक वर्ग) का अधिकार नहीं है।

Yuddh Aur Shanti 2 (Hindi Novel) - युद्ध और शान्ति 2 (Hindi Novel) युद्ध और शान्ति 2 (Hindi Novel)
गुरुदत्त
पृष्ठ 288
मूल्य $ 4.99

युद्ध-काल में भरती किये गए सैनिकों की छटनी की जा रही थी। मथुरासिंह की रेजिमेंट भी इनमें थी। मथुरासिंह की रेजिमेंट इस समय अम्बाला छावनी में ठहरी हुई थी। वहीं उनके लिए आज्ञा पहुँची कि राजपूत एक सौ बीस को ‘डिसबैंड’ किया जाता है और यदि इस विषय में किसी को कुछ कहना हो तो वह सैनिक मुख्य कार्यालय, नई दिल्ली को अपना प्रार्थना-पत्र भेज सकता है। उसी आज्ञा में प्रार्थना-पत्र देने की अन्तिम तिथि की घोषणा भी थी। उस रेजिमेंट में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं था, जो सेना का कार्य छोड़ना चाहता हो। सभी इस आशय का प्रार्थना-पत्र देने की इच्छा रखते थे कि वे सैनिक जाति के घटक होने से सैनिक कार्य को अपना जातीय कार्य समझते हैं। देश में स्वराज्य स्थापित हो गया। अतः अब वे अपने देश की सेवा करने की इच्छा करते हैं।

Sambhavami Yuge Yuge 1 (Hindi Novel) - संभवामि युगे युगे 1 (Hindi Novel) संभवामि युगे युगे 1 (Hindi Novel)
गुरुदत्त
पृष्ठ 222
मूल्य $ 4.99

मैं तो महाभारत के दूसरे भाग को पढ़ने के लिए उत्सुक था, अतः उसी रात वह पुलिन्दा निकाल पढ़ने लगा। उसमें लिखा था– मैंने इस कथा के पूर्वांश में लिखा था कि पांडु-पुत्रों को धृतराष्ट्र के पुत्रों के समान मान और स्थान मिल जाने पर, मैं निश्चिन्त हो गया था। मैंने समझा कि कुरुवंशियों का विनाश, जिसका इन्द्र ने संकेत किया था, अब नहीं होगा। अतः मैं अपना जीवन सुखमय ढंग से व्यतीत करने लगा। उर्मिला मेरे पास रहती थी। मेरे सब बच्चे, मोदमंती का पुत्र नीलाक्ष, नीललोचना के तीनों बच्चे और उर्मिला का पुत्र श्रीकांत, जो वह देवलोक से लायी थी और उसकी मुझसे लड़की लोमा, सब उर्मिला की देख-रेख में मेरे पास ही रहते थे। राज्य में मेरा कार्य केवल धृतराष्ट्र की दरबारदारी करना रह गया था। वे मुझसे देश-देशान्तर के वृत्तान्त सुना करते थे। कभी मैं किसी देश के विषय में कहता कि मैंने वह नहीं देखा, तो वहां मेरे भ्रमण का प्रबन्ध कर दिया जाता। मैं उस देश में जाता। वहां के लोगों के रहन-सहन, सुख-दुःख और रीति-रिवाज तथा वहां के दर्शनीय स्थान देखकर आता और फिर वहां की बात अति रोचक भाषा में उनको सुनाता।।

Sumati (Hindi Novel) - सुमति (Hindi Novel) सुमति (Hindi Novel)
गुरुदत्त
पृष्ठ 136
मूल्य $ 4.99

बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता। परन्तु सब यंत्रों की भाँति इसकी सफाई, इसको तेल देना तथा इसकी मरम्मत होती रहनी चाहिए। सफाई के लिए तो यम और नियमों का विधान है और तेल देने तथा मरम्मत करने के लिए सत्संग् तथा सत्-साहित्य सहायक होते हैं। इन दोनों को प्राप्त करने का माध्यम शिक्षा है। माध्यम स्वं कुछ नहीं करता। जैसे बिजली का तार तो कुछ नहीं, यद्यपि यह महान् शक्ति के लिए मार्ग प्रस्तुत करता है। इसमें पॉज़िटिव विद्युत का प्रवाह भी हो सकता है और नेगेटिव का भी। दोनों शक्ति के रूप में हैं। परन्तु इससे जो मशीनें चलती हैं उनकी दिशा का निश्चय होता है। इसी प्रकार शिक्षा के माध्यम से सत्संग और सत्-साहित्य भी प्राप्त हो सकता है और कुसंग तथा कुसाहित्य भी। सत्संग और सत्-साहित्य से सुमति प्राप्त होती है और कुसंग तथा कुत्सित साहित्य से दुर्मति। इस पुस्तक का यही विषय है। शिक्षा के माध्यम से सत्संग तथा सत्साहित्य कार्य करते हैं। इससे सुमति प्राप्त होती है। तब पुरुषार्थ सौभाग्य का सहायक हो जाता है।