लेखक:
गुणवन्त शाह
गुजराती के प्रसिद्ध चिन्तक, शिक्षाविद और समाजसेवी। 12 मार्च, 1937 को सूरत में जन्म। प्रारम्भ में एम.एस. विश्वविद्यालय में अध्यापन तत्पश्चात् अमेरिका में दो बार विज़िटिंग प्रोफ़ेसर। प्रशिक्षण संस्थान, चेन्नई में टेक्नीकल टीचर्स शिक्षा विभाग के अध्यक्ष के रूप में (1972-73) सेवाएँ। इंटरनेशनल एसोशिएशन ऑफ़ एजुकेशन फॉर वर्ल्ड पीस के चांसलर (1974-90) के साथ-साथ इंडियन एसोशिएशन ऑफ़ टेक्नालॉजी के अध्यक्ष। दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय सूरत के डिपार्टमेंट ऑफ़ एजुकेशन के प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष पद से स्वैच्छिक निवृति लेकर स्वतन्त्र लेखन कार्य। प्रकाशन: काव्य, उपन्यास, व्यक्ति विचार-चिन्तन, आत्मकथ्य, ललित निबन्ध आदि विधाओं से सम्बद्ध 50 से अधिक पुस्तकें। ‘कृष्णनुं जीवन संगीत’, ‘अस्तित्व नो उत्सव’, ‘सरदार माने सरदार’, ‘गाँधी : नवी पेढीनी नजरे’, ‘विचारोना वृन्दावनमां’, ‘शक्यताना शिल्पी अरविन्द’, ‘संभवामि क्षणे क्षणे’ तथा ‘रामायण : मानवतानुं महाकाव्य’ जैसी पुस्तकें विशेष उल्लेखनीय। पुरस्कार-सम्मान : गुजराती साहित्य को अपने सम्पूर्ण योगदान के लिए दो शिखर पुरस्कार ‘रणजितराम सुवर्णचन्द्रक’ (1977) एवं ‘नर्मद सुवर्णचन्द्रक’ (1979)। इनके अतिरिक्त गुजराती साहित्य परिषद् से ‘ स्वामी सच्चिदानन्द सम्मान’ (2001) एवं ‘ दर्शक सम्मान’ (2012) से पुरस्कृत। अनुवादक – बंसीधर निवृत्त हिन्दी प्राध्यापक हिन्दी में मौलिक एवं सम्पादित आठ पुस्तकें तथा गुजराती से हिन्दी में अनूदित सात पुस्तकें प्रकाशित। कहानी-उपन्यास एवं इतिहास विषय में विशेष रुचि। हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में स्वतन्त्र लेखन। |
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रामायण : मानवता का महाकाव्यगुणवन्त शाह
मूल्य: $ 30.95 |