लेखक:
पी.ओ बोडिंग
सन्ताली भाषा-संस्कृति के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पॉल ओलाफ़ बोडिंग का जन्म 2 नवम्बर, 1865 को गोजोविक, ओपलैंड (नॉर्वे) में हुआ था। उन्होंने क्रिस्टियानिया विश्वविद्यालय (अब ओस्लो विश्वविद्यालय) में धर्मशास्त्र का अध्ययन किया और 1889 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1890 में वे मिशनरी पादरी के रूप में झारखंड पहुँचे और मुख्य रूप से दुमका में रहे। भाषाविज्ञान के प्रति गहरे आकर्षण और स्थानीय समुदायों में वास्तविक रुचि के कारण उन्होंने सन्ताली भाषा-संस्कृति का समर्पित भाव से अध्ययन और दस्तावेजीकरण किया जो इसके संहिताकरण और मानकीकरण के लिए बुनियादी साबित हुआ। उन्होंने सन्ताल समुदाय के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और लोककथाओं का भी गहन अध्ययन-विश्लेषण किया। उनके विद्वतापूर्ण कार्यों में सन्ताली व्याकरण सम्बन्धी विश्लेषण, शब्दकोश, लोक साहित्य संकलन और धार्मिक साहित्य का सन्ताली में अनुवाद शामिल हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘मैटेरियल्स फ़ॉर ए सन्ताली ग्रामर’, ‘ए चैप्टर ऑफ़ सन्ताल फ़ोकलोर’, ‘सन्ताल फ़ोकटेल्स’ (तीन खंड), ‘स्टडीज इन सन्ताल मेडिसिंस एंड कनेक्टेड फ़ोकलोर’ (तीन खंड), ‘ए सन्ताल डिक्शनरी’ (पाँच खंड), ‘सन्ताल रिडल्स एंड विचक्राफ़्ट्स अमंग द सन्ताल्स’। झारखंड में उन्होंने चार दशक से भी अधिक समय तक काम किया। 1934 में वे ओडेंस (डेनमार्क) जा बसे। वहीं 25 सितम्बर, 1938 को उनका निधन हुआ। |
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सन्ताल : परम्पराएँ एवं संस्थानपी.ओ बोडिंग
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"संताल परम्पराओं और संस्थानों का गहन अन्वेषण, उनकी समृद्ध विरासत को समझने के लिए एक अनिवार्य मार्गदर्शिका।" आगे... |