लेखक:
सुरेश ऋतुपर्ण
12 जुलाई 1949 में मथुरा में जन्म। दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.ए., एम. लिट् एवं पी-एच.डी की उपाधि। ‘नयी कविता में नाटकीय तत्त्व’ विषय पर शोध-कार्य। सन् 1971 से सन् 2002 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित शिक्षा-संस्थान हिंदू कॉलेज में अध्यापन कार्य। सन् 1988 से 1992 तक ट्रिनीडाड स्थित भारतीय हाई कमीशन में एक राजनयिक के रूप में प्रतिनियुक्ति। सन् 1999 से 2002 तक मॉरीशस स्थित महात्या गाँधी संस्थान में ‘जवाहर लाल नेहरू चेयर ऑफ इंडियन स्टडीज’ पर अतिथि आचार्य। सन् 2002 से 2012 तक ‘तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज’ में प्रोफेसर के रूप में कार्य। ‘अकेली गौरैया देख’, ‘मुक्तिबोध की काव्य सृष्टि’, ‘हिंदी की विश्व यात्रा’, ‘हिंदी सब संसार’, ‘जापान की लोक-कथाएँ’, ‘ये मेरे कामकाजी शब्द’, ‘जापान के क्षितिज पर रचना का इन्द्रधनुष’, ‘हिरोशिया की याद एवं अन्य कविताएँ’, ‘इक्कीस जापानी लोक-कथाएँ’, ‘जापान में हिन्दी शिक्षण की परम्परा’ एवं पाँच लघु नाटक सहित कई पुस्तकें प्रकाशित। अमेरिका, जापान, कनाडा, ट्रिनीडाड, सूरीनाम, गयाना, फीजी, मॉरीशस, फ्रांस, जर्मनी, इटली आदि देशों की यात्राएँ एवं दीर्घ प्रवास। ‘विश्व हिन्दी न्यास’ (न्यूयॉर्क, अमेरिका) के अन्तरराष्ट्रीय समन्वयक एवं त्रैमासिक पत्रिका ‘हिन्दी जगत’ के संपादक। विदेशों में हिन्दी प्रचार-प्रसार के कार्य के लिए ‘ट्रिनीडाड हिंदी भूषण सम्मान’ ‘हिंदी निधि सम्मान’, ‘विदेश हिंदी प्रसार सम्मान’, ‘फादर कामिल बुल्के सम्मान’, सरस्वती साहित्य सम्मान’ एवं ‘साहित्य शिरोमणि सम्मान’ से सम्मानित। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की सामान्य परिषद् के सदस्य, संप्रति : निदेशक, के.के.बिड़ला फाउंडेशन, नई दिल्ली। |
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