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लेखक:

सूर्यबाला
जन्म : 25 अक्टूबर, 1944 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश।

शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी. (रीति साहित्य—काशी हिंदू विश्वविद्यालय)।

समकालीन कथा साहित्य में सूर्यबाला का लेखन अपनी विशिष्ट भूमिका और महत्त्व रखता है। अब तक प्रकाशित पाँच उपन्यास, दस कथा-संग्रह और चार व्यंग्य-संग्रहों के अतिरिक्त डायरी, संस्मरणों पर भी उन्होंने कलम चलाई है। समाज, जीवन, परंपरा, आधुनिकता एवं उनसे जुड़ी समस्याओं को सूर्यबाला एक खुली, मुक्त और नितांत अपनी दृष्टि से देखने की कोशिश करती हैं, उसमें न अंधश्रद्धा है, न एकांगी विद्रोह।

अनेक रचनाएँ कक्षा आठ से स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में संकलित।

टी.वी. धारावाहिकों के माध्यम से अनेक कहानियों, उपन्यासों तथा हास्य-व्यंग्यपरक रचनाओं का रुपांतर प्रस्तुत, जिनमें ‘पलाश के फूल, न किन्नी न, सौदागर, एक इंद्रधनुष : जुबेदा के नाम, सबको पता है, रेस, निर्वासित आदि प्रमुख हैं।

सम्मान/पुरस्कार : साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत।

कृतियाँ :

उपन्यास : मेरे संधि-पत्र, सुबह के इंतजार तक, अग्निपंखी, यामिनी-कथा, दीक्षांत।

कथा-संग्रह : एक इंद्रधनुष : जुबेदा के नाम : (समान सतहें, व्यभिचार, सुलह, ‘हाँ, लाल पलाश के फूल...नहीं ला सकूँगा....’, दरारें, अविभाज्य, निर्वासित, रेस, एक इंद्रधनुष जुबेदा के नाम।), दिशाहीन, थाली भर चाँद : (न किन्नी न, रहमदिल, तोहफा, रमन की चाची, पराजित, पड़ाव, संताप, झील, राख, सिर्फ मैं... कहाँ तक, खोह, ‘कहो, ना’, थाली भर चाँद, योद्धा, सुम्मी की बात।), मुँडेर पर, गृह-प्रवेश, साँझवती, कात्यायनी संवाद : (लिखना क्यों?...., बिन रोई लड़की, बिहिश्त बनाम मौजीराम की झाड़ू, ‘कागज की नावें, चाँदी के बाल’, एक लॉन की जबानी, सीखचों के आर-पार, उत्सव, चोर दरवाजे, अंतरंग, उजास, कात्यायनी संवाद, माय नेम इश ताता।), इक्कीस कहानियाँ, पाँच लंबी कहानियाँ : (गृह प्रवेश, भुक्खड़ की औलाद, मानसी, मटियाला तीतर, अनाम लमहों के नाम।), सिस्टर! प्लीज आप जाना नहीं, मानुष-गंध : (मानुष-गंध, शहर की सबसे दर्दनाक खबर, तिलिस्म, इस धरती के लिए, दादी और रिमोट, क्रॉसिंग, पूर्णाहुति, जश्न, सजायाफ्ता, क्या मालूम, मातम, चिड़िया जैसी माँ, भुक्खड़ की औलाद, और एक सत्यकथा...(आत्मकथांश)।

हास्य-व्यंग्य : अजगर करे न चाकरी, धृतराष्ट्र टाइम्स, देशसेवा के अखाड़े में, भगवान ने कहा था।

बालोपयोगी : झगड़ा निपटारक दफ्तर।

मानुष गंध

सूर्यबाला

मूल्य: $ 9.95

सूर्यबाला की कहानियाँ सामाजिक अन्तर्विरोधों की गहरी पहचान का आभास करा देती हैं...

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