विभिन्न रामायण एवं गीता >> श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1महर्षि वेदव्यास
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भगवद्गीता की पृष्ठभूमि
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वज:।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डव:।।20।।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।
अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथ स्थापय मेऽच्युत।।21।।
हे राजन! इसके बाद कपिध्वज (अर्जुन के ध्वज पर महाबली हनुमानजी का चित्र
विराजमान था) अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए
धृतराष्ट्र-सम्बन्धियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष
उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा - हे अच्युत! मेरे रथ को
दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये।।20-21।।
इस श्लोक से गीता की विषय वस्तु का आरंभ होता है। इस युद्ध में भाग लेने
से पहले अर्जुन मन और बुद्धि अपने और अपने भाइयों के साथ हुए छल का
प्रतिरोध करने में इतनी अधिक व्यस्त थी कि उसने संभवतः कभी इस युद्ध की
विकरालता और उसका प्रभाव सोचने में ध्यान नहीं लगाया था। युद्ध के आरंभ
में वह स्वाभाविक स्थिति में जानना चाहता है कि इस युद्ध में वह किन लोगों
से युद्ध में प्रवृत्त होने जा रहा है। इस क्षण के पूर्व उसने युद्ध की
इच्छा से एकत्र हुए कौरवों-पाण्डवों और उनके सहयोगियों के बारे में कभी
ध्यान नहीं दिया था। अर्जुन भगवान् कृष्ण को अच्युत अर्थात् जो कि कभी भी
शक्तिहीन नहीं होते हैं, इस नाम से संबोधित करता है और उनसे आग्रह करता है
कि इस धर्म युद्ध में कौन उसके पक्ष में है और कौन उसके विरुद्ध उपस्थित
है, यह दिखायें।
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