गीता प्रेस, गोरखपुर >> महकते जीवन फूल महकते जीवन फूलरामचरण महेन्द्र
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हमारा जीवन सुंगन्धित फूलों की तरह महकता रहे अपनी सुवास से दूसरों के जीवन को निरन्तर महकाता रहे, उन्हें प्रेम की पुचकार और साहस का प्रोत्साहन देकर आगे बढ़ाता रहे।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भूमिका
हमारा जीवन सुगन्धित फूलों की तरह महकता रहे, अपनी सुवास से दूसरों के
जीवन को निरन्तर महकाता रहे, उन्हें प्रेम की पुचकार और साहस का
प्रोत्साहन देकर आगे बढ़ाता रहे। मनुष्य को एक सीमित और अनजान अवधिका
जीवन-रूपी अवसर मिला है, उसके–जीवन-पुष्प में कुछ दिन के लिये
ही
महक है; अतः उसे सबसे सुन्दर ढंग से व्यतीत करना चाहिये। उलझन, अशान्ति और
परेशानी में जिन्दगी बिताना मानवता नहीं है। हर व्यक्ति हर आदमी को अच्छे
से-अच्छा जीवन व्यतीत करने में मदद देता हुआ स्वयं भी कलात्मक सौरभ-युक्त
ढंग से जिये, तभी मानव-जीवन का उद्देश्य सफल और ईश्वर की सृष्टि का
मन्तव्य पूर्ण होगा, अन्यथा नहीं।
मनुष्य का व्यक्तित्व समुद्र से भी गम्भीर, निश्चल और प्रशान्त है। उसमें सूर्य-जैसी प्रतिभा, प्रखरता और तेजस्विता है। उसके बुद्धिबल, आत्मबल और कला-कौशल की कोई थाह नहीं। वही सबसे अधिक विकसित जीव है। यदि उसकी सब शक्तियाँ किसी प्रकार एकाएक प्रकट हो जायँ, तो वह संसार में उथल-पुथल मचा सकता है, चाहे जो समग्र संसार को सद्ज्ञान के प्रकाश से जगमग-जगमग कर सकता है,
सर्वांगगीण समृद्धि और विकास की विपुल सम्भावनाएँ मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा में विद्यमान हैं, पर वह उन्हें सतत पुरुषार्थ और प्रयत्न के बल पर ही प्राप्त करता है। हमें मनुष्य-जीवन इसलिये मिला है कि हम अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करें और अपनी महक से इस संसाररूपी उद्यान को सुवासित कर दें।
जीवन एक संग्राम है, इसमें विजय केवल उन्हीं वीरों को मिलती है, जो अपने पराक्रम और पौरुष की उत्कृष्टता सिद्ध करते हैं। नदी को समुद्र तक पहुँचने की सफलता तब मिलती है, जब वह चट्टानों से टकराती हुई अपने प्रवाह को अग्रगामी बनाये रखने की क्षमता अक्षुण्ण रखती है। जिस पानी में यह शक्ति नहीं होती वह तालाब या झील की तरह अवरुद्ध बना पड़ा रहता है। प्रगति का स्वप्न साकार करने का अवसर उसे कहाँ मिलता है ?
मनुष्य का व्यक्तित्व समुद्र से भी गम्भीर, निश्चल और प्रशान्त है। उसमें सूर्य-जैसी प्रतिभा, प्रखरता और तेजस्विता है। उसके बुद्धिबल, आत्मबल और कला-कौशल की कोई थाह नहीं। वही सबसे अधिक विकसित जीव है। यदि उसकी सब शक्तियाँ किसी प्रकार एकाएक प्रकट हो जायँ, तो वह संसार में उथल-पुथल मचा सकता है, चाहे जो समग्र संसार को सद्ज्ञान के प्रकाश से जगमग-जगमग कर सकता है,
सर्वांगगीण समृद्धि और विकास की विपुल सम्भावनाएँ मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा में विद्यमान हैं, पर वह उन्हें सतत पुरुषार्थ और प्रयत्न के बल पर ही प्राप्त करता है। हमें मनुष्य-जीवन इसलिये मिला है कि हम अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करें और अपनी महक से इस संसाररूपी उद्यान को सुवासित कर दें।
जीवन एक संग्राम है, इसमें विजय केवल उन्हीं वीरों को मिलती है, जो अपने पराक्रम और पौरुष की उत्कृष्टता सिद्ध करते हैं। नदी को समुद्र तक पहुँचने की सफलता तब मिलती है, जब वह चट्टानों से टकराती हुई अपने प्रवाह को अग्रगामी बनाये रखने की क्षमता अक्षुण्ण रखती है। जिस पानी में यह शक्ति नहीं होती वह तालाब या झील की तरह अवरुद्ध बना पड़ा रहता है। प्रगति का स्वप्न साकार करने का अवसर उसे कहाँ मिलता है ?
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