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सारथी का सन्देश

गंदर्भ आनंद

प्रकाशक : अनुराधा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 10128
आईएसबीएन :9789382339816

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प्रस्तुत पुस्तक में अलग-अलग काव्य-छन्दों का अध्यायवार विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। जिस प्रकार मूल पुस्तक में अठारह अध्याय दिये हुए हैं, ठीक उसी प्रकार प्रस्तुत पुस्तक में अठारह सर्गों का अध्यायवार समावेश किया गया है।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

काव्यारम्भ के दिनों में मेरी उम्र लगभग उन्नीस वर्ष की होगी। मेरी योग्यता कम होते हुए भी, भगवान् श्रीकृष्ण चन्द्र की अहैतुक कृपा ने मुझे इस ओर अग्रसर किया होगा। फिर तो, अनवरत् यह प्रयास चलता रहा और बारह वर्ष की तपस्या के परिणामस्वरूप, भगवान श्री के प्रशाद–तुल्य, श्रीमद्भगवत्गीता–काव्य हिन्दी में, ‘‘सारथी का संदेश’’ के नाम से पूर्ण हुआ। प्रस्तुत पुस्तक में अलग-अलग काव्य-छन्दों का अध्यायवार विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। जिस प्रकार मूल पुस्तक में अठारह अध्याय दिये हुए हैं, ठीक उसी प्रकार प्रस्तुत पुस्तक में अठारह सर्गों का अध्यायवार समावेश किया गया है। पुस्तक का नाम ‘‘सारथी का संदेश’’ रखा गया है। महाभारत के युद्ध में, कुरुक्षेत्र के मैदान में महारथी अर्जुन ने श्रीकृष्ण को अपने रथ के सारथी के रूप में स्वीकार किया था। भगवान् ने जिस प्रकार गीता का उपदेश दिया, वह युगों–युगों हेतु समस्त प्राणियों के लिये, एक परम जीवन–आदर्श बन गया। यहां, एक सारथी ने अपने रथी को उस समय ज्ञानोपदेश दिया जब रथी ने अपना शस्त्र रख दिया था। एक सारथी ने अपने रथी को यह संदेश दिया कि देखो ! सब कुछ मैं ही हूँ, मेरे सिवाय कहीं कुछ भी, किञ्चित भी नहीं है। तुम भी मेरे ही प्रतिबिम्ब हो। इसलिये, मेरी ही शरण में आने से तुम अपने वास्तविक स्वरूप को पा सकोगे। तुम बस युद्ध हेतु खड़े हो जाओ।’’ भगवान् श्रीकृष्ण ने अनेकोंनेक संदेश अर्जुन को दिए। ये सारे संदेश, पूर्णरूप से नहीं तो आंशिक रूप से प्रस्तुत पुस्तक में काव्य रूप में संग्रहित किए गये है।’

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