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दर्पण

शबनम शंकर

प्रकाशक : अनुराधा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 10137
आईएसबीएन :9789385083297

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स्वार्थपरक सोच से जन–जन के हृदय को आहत पहुँचते हुए भी सभी ने देखा होगा। बस, इन्हीं दृश्यों से उत्पन्न चिंतन शब्द–बद्ध होकर कविता बनी, जिसमें यथार्थ का ज्वलन्त भाव समाहृत है।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

संसृति की सुंदरता में कुरूपता बाँटते हुए लोग को देखा है। स्वार्थपरक सोच से जन–जन के हृदय को आहत पहुँचते हुए भी सभी ने देखा होगा। बस, इन्हीं दृश्यों से उत्पन्न चिंतन शब्द–बद्ध होकर कविता बनी, जिसमें यथार्थ का ज्वलन्त भाव समाहृत है। आज स्थिति यह है कि ईश्वर की स्तुति में भी हम, मन में शान्ति का भाव, मगर विचार में क्रान्ति–भाव की माँग करते हैं। वह क्रान्ति, जो मानस–पटल पर अंकित स्वार्थपरक विचारों का नाश करे, हृदय में जमीं निर्ममता की कीचड़ का विनाश करे, ताकि कालान्तर हम अपने समाज के सुंदर स्वरूप को देख सकें। कहाँ ? ‘यथार्थ के दर्पण में’

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