लोगों की राय

नई पुस्तकें >> गोशालक

गोशालक

राजेन्द्र रत्नेश

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10173
आईएसबीएन :9788183617895

Like this Hindi book 0

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

वैदिक ही नहीं, बौद्ध और जैन दर्शनों को भी चुनौती देनेवाले गोशालक बुद्ध और महावीर के समकालीन थे। स्वाभाव से विद्रोही और आचरण में तर्क तथा नवाचार की उंगली थामकर नई राहों का अन्वेषण करनेवाले गोशालक के विषय में कहा जाता है कि अपने समय में उनके अनुयायियों की संख्या बुद्ध से भी ज्यादा थी। जनसाधारण में उनका विशेष आदर था। एक खानाबदोश जाति के निर्धन परिवार में जन्मे गोशालक ने आध्यात्मिकता के प्रति अपने जनजत रूझान के कहते युवावस्था के दौरान सात वर्ष भगवन महावीर के सानिध्य में तपस्या की। लेकिन बाद में महावीर से उनके गहरे मतभेद हुए और महावीर के पुरुषार्थ के सिद्धांत के मुकाबले उन्होंने नियतिवाद को स्थापित किया। कहते हैं कि महावीर से उनका विरोध इस हद तक बाधा कि अपनी सिद्धियों में उन्होंने महावर पर प्राणघातक हमले भी किए, हालाँकि जीवन के अंतिम क्षणों में उन्हें इस पर गहरा पश्चाताप भी हुआ जिसके प्रमाण जैन ग्रंथो में पर्याप्त रूप में उपलब्ध हैं। लेकिन जैन-मत के साथ बौद्ध ग्रंथो में भी उनकी निंदा अधिक मिलती है जहाँ न सिर्फ उनके विचारों की कड़ी आलोचना की गई बल्कि उनके चरित्र-हनन का भी प्रयास किया गया। यह उपन्यास आजीवक गोशालक के बारे में संभवतः पहली रचना है जिनके बारे में अनेक पाठको ने शायद कभी सुना भी नहीं होगा। आत्मकथात्मक शैली में निबद्ध यह कृति न सिर्फ गोशालक के जीवन-चरित्र को तमाम रंगों के साथ चित्रित करती है बल्कि उन भ्रांतियों को भी दूर करती है जिनके आधार पर उस नवोन्मेषकारी विचारक को एक खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai