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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति


'स्वाध्याय' का तात्पर्य है-ग्रन्थोंद्वारा स्वयं ज्ञानार्जन करना, किंतु यह बहुत संकुचित अर्थ हुआ। 'स्वाध्याय' का बड़ा व्यापक अर्थ है। हम संसारमें फिरते हैं, नाना व्यक्तियों, संस्थाओं, घटनाओं और शुभ-अशुभ अनुभवोंको देखते हैं। अनेक व्यक्ति, नेता, पण्डित, मुल्ला, उपदेशक, अध्यापक हमें नाना ज्ञान-विज्ञान देते हैं। ये प्रत्येक हमारे अध्ययनकी वस्तु हैं। इन सभीके अनुभवोंसे निष्कर्ष निकालकर हम अपने ज्ञानभण्डारको विकसित कर सकते हैं।

किंतु स्वाध्यायमें सबसे अधिक महत्त्व जिस तत्त्वका है, वह हमारी ग्राहक दृष्टि है। यों तो हम बहुत-सी पुस्तकें पढ़ते है, अनेक व्यक्तियोंके भाषण सुनते हैं, किंतु जो कुछ देखते, पढ़ते अथवा सुनते है, उसमें महत्त्व इस बातका है कि हम वास्तवमें ग्रहण कितना करते हैं, हमारे मस्तिष्कमें कितना ज्ञान ठहरता है और स्थायीरूपसे हमारे मानसिक संस्थानका अंग बनता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जितना अधिक हम पढ़ते हैं, वास्तवमें उससे बहुत ही कम हम ग्रहण कर पाते हैं। हमारा मस्तिष्क बहुत कम ज्ञान ग्रहण करता है।

वह व्यक्ति भला क्योंकर स्वस्थ एवं शक्तिशाली बन सकता है, जो भोजन तो बहुत परिमाणमें करता है, भोजन भी पौष्टिक है, पर उसकी पाचन-क्रिया व्यवस्थित नहीं है? वह जो खाता है निकाल देता है। जबतक उदरमें भोजनके रस एकत्रित होकर स्थायीरूपसे स्वास्थ्य-शक्ति नहीं देते तबतक उसकी शक्तियोंमें अभिवृद्धि असम्भव है। यही हाल मस्तिष्कका है। यदि पढ़ने, देखने और सुननेपर आपका मस्तिष्क बहुत कम ग्रहण करता है, तो स्वाध्यायसे अधिक लाभ सम्भव नहीं है। अतः ग्रहण-शक्तिकी वृद्धि करना नितान्त आवश्यक है। जिस दिमागकी जितनी यह ग्राहक-शक्ति तीव्र होगी, वह उतना ही समुन्नत, सशक्त और ज्ञान-भण्डारसे पूर्ण हो सकेगा। ग्राहक-शक्तिसम्पन्न व्यक्ति एक ही पुस्तक, घटना या दृश्यको देख उसे अपने स्मृतिकोषमें रखकर प्रचुर और स्थायी लाभ उठा सकता है।

ग्रहण-शक्ति मनुष्यके मस्तिष्कके लिये उतनी ही उपयोगी है, जितनी पाचन-शक्ति उदरके लिये आवश्यक है। पाचन-शक्ति हमें नया रक्त, नया मांस, मज्जा, उत्साह और स्वास्थ्य देती है तो ग्राहक-शक्ति हमारे मस्तिष्कको समृद्ध बनाती है। नया ज्ञान हमारे मनमें स्थायीरूपसे ठहर जाता है और हम जीवनपर्यन्त उससे लाभ उठाते रहते हैं।

प्रश्र है ग्राहक दृष्टि कैसे बढ़े? यदि आप दृढ़तासे कहें तथा उसके लिये मनोयोगपूर्वक प्रयत्न करें, तो सच मानिये आपकी ग्राहक-शक्ति तीव्र हो सकती है।

अपने मनको यह आदत डालिये कि वह संसार, समाज, घटनाको गम्भीर दृष्टिसे देखे। यदि कोई पुस्तक पढ़ रहे हैं, तो उसे भी गहरी भेदभरी नजरसे पढ़ा कीजिये। ऐसा प्रयत्न कीजिये कि ऊपरी छिछली दृष्टिसे नीचे गहराईमें उतरकर आप अपने अनुभव, घटना, पुस्तक आदिका निगूढ़तम विश्लेषण कर सकें। व्यक्तियोंसे जब आप वार्तालाप करें, तब भी गम्भीर दृष्टिसे ही कीजिये। ऊपरी बालोचित हलकी-फुलकी बातोंमें निमग्न मत रहिये।

एक विद्वान्के ये अनुभवपूर्ण विचार देखिये। वे लिखते हैं-

'जो घटनाएँ प्रतिदिन हमारे साथ घटित होती हैं, या जो कुछ अनुभवमें आती हैं, उनको जरा गहरी दृष्टिसे देखनेकी आदत डालें; तो बहुत-सी नयी बातें मालूम होती हैं।...जो प्रिय विषय हो, जिसमें विशेष ज्ञान प्राप्त करनेकी इच्छा हो, जिसे अपना लक्ष्य स्थिर किया हो, उसमें विशेष योग्यता प्राप्त करनेके लिये सदा दत्तचित्त रहो। मान लो कि तुम बलवान् होना चाहते हो तो शारीरिक बल-सम्बन्धी जो उपदेश, उदाहरण, घटनाएँ या अनुभव देखो उनमें विशेषरूपसे चित्त लगाओ और गम्भीरतापूर्वक विचार करो कि इसमें क्या बात हानिकारक और क्या उपयोगी है। हम क्या भूल रहे हैं और किन-किन नियमोंका पालन करनेसे लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार यदि प्रतिदिन कुछ गम्भीर सोच-विचार करते रहे, तो बहुत लाभ होगा। गम्भीरतासे किया हुआ विचार कभी व्यर्थ नहीं जाता। वह विचारोंसे विश्वासमें आता है और विश्वाससे अनुभवमें परिणत हो जाता है। यह अनुभव यदि क्रियामें आ जाय, या आदत बन जाय, तो जीवन उच्चकोटिका बन जाता है।'

वास्तवमें गम्भीर दृष्टिसे देखकर ही स्थायी लाभ उठाया जा सकता है। जलपर ऊपर झाग-ही-झाग फैले रहते है। ऊपरी निगाहसे देखनेवाला धोखा खा सकता है, किंतु गहराईसे प्रविष्ट होनेवाला उसकी निस्सारतासे तुरंत परिचित हो जाता है।

गम्भीर दृष्टिका महत्त्व हमारे बड़े-बड़े नेताओं, धर्मप्रचारकों, विद्वानोंने सदैव समझा है। गौतम बुद्धको विलासके रंगीन वातावरणमें रखकर संसारके माया-मोहमें बाँध रखनेके नाना प्रयत्न किये गये, किंतु वृद्ध, रोगी और मृतकको गहरी दृष्टिसे अवलोकन कर वे संसारकी निस्सारता, क्षणभंगुरता और निर्बलतासे परिचित हो गये। वे वस्तुओंकी जड़में प्रविष्ट होकर आधारभूत तत्त्वोंको देखा करते और वस्तुओंका यथार्थ मूल्यांकन किया करते थे।

हलकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण विषय, महान् ग्रन्थ तथा स्थायी अनुभव भी साधारण प्रतीत होता है और मन अपनी पूरी शक्तिसे ग्रहण नहीं करता। हमें सभी कुछ तुच्छ प्रतीत होता है। अनेक व्यक्ति घंटों अपने सामने पुस्तकें लिये बैठे रहते हैं, पढ़नेका अभिनय करते रहते हैं, पर शक्तियोंको एकाग्र न करनेके कारण वास्तविक उन्नति कुछ भी नहीं होती। उलटे असफलता मिलती है और आत्मविश्वास नष्ट हो जाता है।

जो कुछ सोचें, गम्भीरतासे सोचें, खूब विचार करें, हर पहलूसे देखें, मानस-चित्र निर्मित करें। जीवनके हर मोर्चेपर गम्भीर दृष्टि आपको लाभ देगी,? भली-बुरी बाजारकी वस्तुओं और समाजके मनुष्योंके चुनावमें सहायक होगी। गम्भीर दृष्टिसे चिन्तन-मनन एक उत्तम मानसिक प्रक्रिया है जो सशक्त मनकी सूचक है। अतः गम्भीर दृष्टिसे देखनेकी आदत विकसित कीजिये।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

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