गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
'कादम्बरी' में लक्ष्मीके दोषोंका भी वर्णन आता है। दुरुपयोग करनेसे लक्ष्मी (अर्थ) शत्रु बन जाती है। जो नाना भोगविलासकी वस्तुएँ एकत्रित करता है, वह हर प्रकारसे अपना पतन कर लेता है। जब राजकुमार चन्द्रापीडका यौवराज्याभिषेक होने जा रहा था, तो शुकनासने उसे जो शिक्षा दी थी, वह सदा स्मरण रखनेयोग्य है। यहाँ उस भागका साराश दिया जाता है-
'लक्ष्मी मिल जानेपर भी उसे रखना कठिन है। वह जान-पहचानको बनाये नहीं रखती। अच्छे कुलको भी नहीं देखती। कुल-परम्पराके अनुसार नहीं चलती। पाण्डित्यका मूल्य नहीं समझती। त्यागका आदर नहीं करती। शास्त्र नहीं सुनती। विशेष जन या सद्विवेकका विचार नहीं करती। कहीं स्थिर होकर पैर नहीं रखती। गुणवान् मनुष्यको कभी-कभी अपवित्रकी भांति छूती भी नहीं। बड़े साहसीका अमंगलकी भांति अधिक आदर नहीं करती। सज्जनको अशकुनकी भांति नहीं देखती। कुलीनको साँपके समान लाँघ जाती है। वीरको कांटेके समान याद भी नहीं करती। पापीके समान नम्र आदमीके पास नहीं जाती और मनस्वी (प्रतापी) पर पागलके समान हँस देती है।'
तात्पर्य यह है कि ज्यों-ज्यों लक्ष्मी चमकती है अर्थात् मनुष्यके पास धन बढ़ता है, त्यों-त्यों मनुष्यका मन गन्दे कार्यों, वासनापूर्ति और विलासकी ओर जाता है, जैसे दियेकी लौ कालिख उगलती है। लक्ष्मीके बुरे प्रभावमें पड़ जानेपर बड़े लोग बेसुध हो जाते हैं और उनके महल कुकर्मोंके निवासस्थल बन जाते हैं। उनमें उदारता मिट जाती है। हृदय मलिन हो जाता है। सत्यवादिता दूर हो जाती है और गुण गायब होकर वासनाएँ उभर उठती हैं। कुछ लोग धनके लालचमें पड़कर गन्दे विकारोंके आक्रमणसे विवश होकर बेसुध हो जाते हैं। मरणासन्न लोगोंके समान अच्छे मित्रों, परिवारके सदस्यों और गुरुओंतकको नहीं पहचानते। अतः धनकी, शक्तिको अच्छे कार्योंमें ही व्यय करना चाहिये।
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- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
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- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
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- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
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- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
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- समृद्धि के पथपर
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- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
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- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
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- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
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- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन