गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
किसी भी कार्यको हाथमें लेनेसे पूर्व यह भलीभांति सोच लीजिये कि वह कार्य उचित (Desirable) है या नहीं? उसे पूर्ण करनेमें किन-किन बातोंकी आवश्यकता प्रतीत होगी? सम्भवतः कौन-कौनसे विघ्न मार्गमें पड़ सकते हैं? उन विघ्नोंको परास्त करनेके लिये आपके पास क्या उपाय है? आप पहिले उस मार्गपर चलनेवाले पथिकोंसे सम्मति लीजिये; उनके अनुभवोंपर मानसिक नेत्र केन्द्रित कीजिये। जब आपकी अन्तरात्मा आपको यह बतला दे कि वह कार्य करनेके योग्य है तथा आपमें उसके योग्य सामर्थ्य एवं उपयुक्त साधन उपस्थित हैं तो आप साहसपूर्वक अपनी नौकाको समुद्रमें खोल दें। सूईकी तरह उसमें दृढ़तासे लग जायँ और फिर कैसा ही संकट पड़े, उसे अधूरा न छोड़ें।
निर्णयमें अन्तरात्मासे सम्मति लीजिये। आत्माका निर्देश क्या है? वह आपको किस ओर प्रेरित करती है? अपनी शिक्षा, अपने इतने वर्षोंके अनुभव आपको क्या बताते है? अन्य मनुष्य क्या कहते हैं?
शान्तचित्त होकर एक प्रशान्त स्थानमें बैठिये। मनमें अपनी गुत्थी (Promblem) को लाइये। फिर उसपर दैवी प्रेरणा लेनेका प्रयत्न कीजिये। चुपचाप अन्तःकरणकी ध्वनि सुनिये। देखिये, आपकी अन्तःप्रेरणा क्या निर्देश करती है? दैवी प्रेरणानुसार किये गये सब निश्चयोंमें सिद्धि प्राप्त होती है। दैवी प्रेरणा उसी परम तत्त्व का प्रकाश है जो निरन्तर हमारी आत्माको प्रकाशित करता है। हम जितना ही इस दैवी-तत्त्वसे सम्बन्ध जोड़ेंगे-जितना ही अपने परम पितामें तन्मय हो जायँगे, उतनी ही स्पष्टतासे हमें आत्मध्वनि सुनायी देगी।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन