गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
जीवनमें रस लें
हमारा आधारभूत सत्य यह होना चाहिये कि हम अपने जीवनको प्यार करना, उसमें अधिक-से-अधिक सफलता, प्रतिष्ठा एवं गौरव प्राप्त करनेका उद्देश्य अपने समक्ष रखें। बुद्धिमत्तापूर्वक जीवनका कार्यक्रम, पेशा, कार्यक्षेत्रका चुनाव करें। जो कार्य हमें जीवनभर करना है, उसपर रचनात्मक दृष्टिसे विचार करें। उसमें आनन्द लें। लोग कुछ वर्ष पश्चात् अपने कार्यमें दिलचस्पी या रस लेना छोड़ देते हैं और कामको भारस्वरूप समझने लगते हैं। यह बड़े क्षोभका विषय है।
अपने कार्यमें रस लीजिये, उसे दिलचस्प बनाइये। दिलचस्पीसे अपना कार्य करनेसे मनुष्यका स्थायी उत्साह बना रहता है और कार्य सहज सरल हो उठता है। गहराईसे अपने पेशेके गुप्त रहस्य मालूम करें और अपने-आपको कार्यके अनुकूल बना लें, ढाल लें। जैसे-जैसे आपकी शक्ति, स्वभाव और आदतें पेशेके अनुकूल ढलती जायँगी, वैसे-वैसे एकरसता हटती जायगी। हम निरन्तर अपने पेशोंमें उन्नति करते जा रहे हैं-यह भाव मनमें रखनेसे स्थायी उत्साह बना रहता है।
प्रत्येक व्यक्तिको कुछ-न-कुछ कार्य करना पड़ता है, हम भी अपना कार्य कर रहे हैं। जब बिना काम जिंदा नहीं रहा जा सकता, तो हम क्यों न अपने कार्यमें रस लें-यह मनमें बैठा लेना चाहिये।
प्रधान कार्यके अतिरिक्त कुछ अवकाशका समय निकालें, जिसमें कुछ-न-कुछ मनोरंजन करते रहें। मनोरंजन जीवनका रस है। कुछ कालके लिये आप संसारकी चिन्ताएँ भूल जायँ। उत्साहसे खेलोंमें भाग लें। उत्साह बनाये रखनेसे शरीरकी शक्तियाँ सक्रिय हो जाती हैं और आत्मविश्वास बढ़ता है।
पेशेमें रस बनाये रखनेके लिये यह आवश्यक है कि आप कुछ दिनोंके लिये मुख्य पेशा छोड़ते रहें और दूसरे कार्योंमें संलग्न होते रहें। नया कार्य करनेसे सरसता बनी रहती है तथा कुछ काल पश्चात् पुराने पेशेके प्रति पुनः उत्साह जाग्रत् हो उठता है।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन