गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
क्रियाशीलता यौवन स्थिर रखती है
विकासवादी सिद्धान्त है कि पहले मनुष्य एक जंगली जीव था। सभ्यताके ऊषःकालमें जब अन्य वन्य पशुओंकी भांति वह उन्मुक्त विचरण करता रहा; घूमना, फिरना, तेजीसे भागकर अपनी उदरपूर्तिके हेतु आखेट करना, तैरना, कूदना-फाँदना-जब उसके दैनिक क्रम रहे, यौवन और जीवन आनन्द प्राप्त करता रहा।
सभ्यताका विकास हुआ या यों कहिये मनुष्य धीरे-धीरे कृत्रिमताके बन्धनमें बँधने लगा, उसका दूर-दूरतक घूमना, फिरना, तैरना, खेलना, कूदना कम होने लगा। वह भोजनोंको भी पकाने लगा; जिह्वाके स्वादमें फँस गया। प्राकृतिक आहारके स्थानपर नाना प्रकारके कृत्रिम भोजनोंका आविष्कार किया गया।
मनुष्यका जीवन आलसी बन गया। प्रकृति श्रमकी पुजारिन है। वह उन्हीं पशु-पक्षियों, जलचर, नभचर इत्यादिको विकसित करती है, जो लगातार परिश्रम करनेके अभ्यस्त हैं। जो जितना ही क्रियाशील है, उतना ही स्वस्थ और सुडौल है। हरिण चौक्की भरता है, नीलगाय तेज दौड़ती है, अश्व जीवनपर्यन्त जीवनकी दौड़ दौड़ता रहता है; पक्षी निरन्तर व्यायाम करते है, बिना पंखोंका उपयोग किये, उन्हें भोजन भी प्राप्त नहीं होता, मछलियों निरन्तर तैरती रहती है, जंगलके जितने भी जानवर है, क्रियाशील रहकर ही जीवनके नाना उपादान एकत्रित करते हैं। गाय, भैसें, बकरी, भेड़ दिनभर घूम-घूमकर घास खाते हैं। यह क्रियाशीलता ही उनके स्वास्थ्यका मूल है। न उन्हें कब्जकी शिकायत होती है, न कड़वी दवाइयाँ भक्षण करनी पड़ती हैं।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन