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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

शारीरिक श्रम किया करें


यौवनके इच्छुकको चाहिये कि यथाशक्ति श्रम करे। चलने-फिरनेके कार्य पाँवोंसे करे। साइकिल तथा इक्कोंसे दूर रहे। यदि आपका दफ्तर दो मील दूर है तो आने-जानेका कार्य पाँवोंसे लीजिये। बाजारसे नाना प्रकारकी वस्तुएँ पैदल ही खरीदने जाना चाहिये। स्कूल पैदल चले। प्रकृति चाहती है कि दिनभर आप काफी चलें; बैठे न रहें।

जल जब एक ही स्थानपर स्थिर रहता है, तो गंदा हो जाता है। वही जल जब लहरोंके रूपमें बहने लगता है, तो मल पदार्थोंसे स्वच्छ हो जाता है। चलने-फिरने, क्रियाशील रहनेसे यौवन स्थिर रहता है। प्राकृतिक प्रणालीमें शरीरकी सफाई, पुनःनिर्माण और विकासके लिये क्रियाशीलता एक आवश्यक तत्त्व है।

फौजमें रहनेवालोंको नियमित रूपसे चार-पाँच घंटे ड्रिल करायी जाती है। कदम मिलाकर चलना, भागना, दौड़ना, कूदना उनके जीवनके साथ ला दिया जाता है। फलतः वे दीर्घजीवी और परिपुष्ट होते है। सीधे खड़े होने, रीढ़को सीधा रखने, गहरी साँस लेनेसे, व्यायाम तथा कसरतसे यौवन स्थिर रहता है।

एक स्थानपर टिककर घंटों बैठे रहना, गद्दीपर मोटे तकियोंके सहारे लेटे रहना, स्वयं अपने हाथ-पाँवसे काम न कर दूसरोंकी बाट देखना, थोड़ी-थोड़ी दूरके लिये साइकिल, बस, रिक्शा या तांगे का प्रयोग, टहलने न जाना, व्यायाम न करना, शारीरिक श्रमसे जी चुराना बुढ़ापेको आमन्त्रित करनेकी आदतें हैं। इनसे मनुष्यका विकास अवरुद्ध हो जाता है।

इसके विपरीत नित्य समयपर टहलने जाना जीवनको बढ़ा लेना है। टहलना अपने-आपमें हलका व्यायाम है। श्रीभुवनेश्वरनाथ माधव लिखते हैं-'जो खुली हवामें टहलता है, उसे अस्पतालोंकी धूल फाँकनी नहीं पड़ती; न डाक्टरोंके पीछे-पीछे समयका खून करना पड़ता है। टहलनेवालेका विश्वास है कि शरीर, मन, प्राण और आत्माको चिर सुन्दर, चिर युवा, चिर उल्लासमय रखनेके लिये टहलना यथेष्ट है, उसके विचारमें डाक्टर शत्रु और दवा जहर है। वह इन दोनोंसे बचेगा, उसे इनकी आवश्यकता न होगी। वह प्रकृति माताका स्तन पान करनेवाला भला अपने गलके नीचे टिकिया या मिक्श्चरके जहरको क्यों उतारेगा? वह जानता है उसके शरीरके लिये जितना कुछ आवश्यक है, प्रकृति देती है। प्रायः लोग उपवासके समय मुर्देके समान पड़ जाते है। उपवाससे पूरा-पूरा लाभ उठानेके लिये टहलना नितान्त आवश्यक है। मीठी नींद आती है, टहलनेवालेको ही। वह शिशुकी तरह सोता है और सिपाहीकी तरह जागता है-बिलकुल तरों ताजा।'

जो लोग तैर सकते हैं, वे तैरकर व्यायाम करें। जो सूर्य-नमस्कारका आनन्द उठा लेते हैं, वे सब प्रकारकी निराशा, विषाद, पीड़ा, दुःख और ग्लानिसे मुक्त रहते हैं। यदि आप कोई बड़ा व्यायाम नहीं करते, तो टहलने और मालिशको तो अपना ही लीजिये। ब्राह्ममुहूर्तमें टहलना, संगीत, स्नान, पूजा, व्यायाम इत्यादि ऐसे पवित्र कर्म है, जिनसे आपके शरीर, मन, प्राण और आत्मा सुखी-समृद्ध हो सकते हैं। आपका शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न, हृदय उदार और आत्मा तेजोमय हो सकती है। इन्द्रियोंके विकारोंसे शान्ति मिल सकती है और यौवन स्थिर रह सकता है। यदि आप हाथ-पाँव न हिलाना रईसी आदत समझते है तो प्रकृति आपको ऐसी सजा देगी जिससे आपके शरीरकी क्रियाशीलता पंगु हो जायगी।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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