उपन्यास >> देना पावना देना पावनाशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मंदिरों की अपार धनसंपदा हड़पने के लिए पुजारी, जमींदार तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति कितनी ओछी हरकतें कर सकते हैं, इस की एक मिसाल है शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का यथार्थपरक उपन्यास ‘देना पावना’ जिसमें चंडीगढ़ के एक मंदिर की बहुमूल्य संपत्ति हथियाने के लिए गांव के प्रतिष्ठित लोगों ने भैरवी को लांछित और अपमानित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी-इस षड्यंत्र में नारी की भावनाओं और संवेदनाओं के साथ भी जम कर खिलवाड़ किया गया है, जिसकी गहन एवं मार्मिक अभिव्यक्ति में शरतचंद्र ने कलम तोड़ दी है- संभवतया इसीलिए उन्हें ‘नारी वेदना का पुरोहित’ कहा जाता है।
भारतीय रचनाकारों की पहली पंक्ति में गिने जाने वाले कथाकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने परंपरागत बंधनों, संकीर्ण मानसिकताओं, हीनताओं, दुर्बलताओं के मायाजाल से निकलकर हिंदू समाज, विशेषतया नारियों को उदार एवं व्यापक दृष्टि प्रदान करने का प्रयास किया है। शरतचंद्र की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि उन की रचनाओं का भारतीय ही नहीं, विश्व की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
भारतीय रचनाकारों की पहली पंक्ति में गिने जाने वाले कथाकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने परंपरागत बंधनों, संकीर्ण मानसिकताओं, हीनताओं, दुर्बलताओं के मायाजाल से निकलकर हिंदू समाज, विशेषतया नारियों को उदार एवं व्यापक दृष्टि प्रदान करने का प्रयास किया है। शरतचंद्र की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि उन की रचनाओं का भारतीय ही नहीं, विश्व की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
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