नाटक-एकाँकी >> जब शहर हमारा सोता है जब शहर हमारा सोता हैपीयूष मिश्रा
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
राबर्ट वाइज द्वारा निर्देशित, आर्थर लोरेंटज द्वारा लिखित, जेरोम डी. रॉबिन्स द्वारा नृत्य-संयोजित, नियोनिद बोर्नस्टीन द्वारा संगीत और स्टीवन सोंघीम द्वारा लिखे गए गीतों से सुसज्जित फिल्म ‘वेस्ट साइड स्टोरी’ सिर्फ अपने दस ओस्कर अवार्ड्स की भीड़ की वजह से ही प्रसिद्द नहीं है, बल्कि विलियम शेक्सपियर के ‘रोमियो एंड जूलियट’ से प्रेरित यह ब्राडवे म्यूजिकल क्लास्सिक कई मायनों में दुनिया के आधुनिक थिएटर इतिहास में मील का पत्थर मानी जाती है। ‘एक्ट-वन’ ने अपना अगला नाटक चुन लिया था जिसे नाटक से अधिक दुस्साहस कहना उचित होगा। ‘वेस्ट साइड स्टोरी’ का नया नामकरण हुआ...’जब शहर हमारा सोता है’। जातक पढ़ा गया। फिल्म देखी गई। और गदगद होने की प्रक्रिया से उबरने के बाद सर्वसम्मति से फैसला हुआ कि अब इस स्क्रिप्ट को एक तरफ रख दिया जाए। हमारी स्क्रिप्ट हमारी होगी जिसमे हमारे चरित्र होने, हमारी सिचुएशंस होंगी, हमारे दृश्य होंगे, हमारे गीत और संगीत के साथ हमारा अपना हिंदुस्तान होगा। नाटक समसामयिक और पूर्णतया प्रासंगिक होगा और उसको लिखते वक्त हमारी नजर में हमारे दर्शक होंगे। देश में उन वक्त सम्प्रदायवाद ने खोलती हुई धूनी रमाई हुई थी। बाबरी मस्जिद पर पहली चढ़ाई हो चुकी थी। आज से चार सौ साल पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के परिणामों को भोगता हुआ हमारा खूबसूरत मुल्क 1947 और 1984 को छूता हुआ आज जब गोधरा से एक कदम आगे जाने की छटपटाहत से गुजर रहा है, तो ‘शहर....’ के जिन्दा होने का अहसास पहले से भी ज्यादा मुखर और प्रखर हो जाता है।
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