नई पुस्तकें >> संस्कृत आलोचना की भूमिका संस्कृत आलोचना की भूमिकाअवधेश कुमार सिंह
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
इतिहास तथा विचार-समृद्धि के स्तर पर संस्कृत आलोचना विश्व की श्रेष्ठतम आलोचना परंपरा है जिसमें साहित्य तथा कला के विविध आयामों की व्यापक तथा सूक्ष्म चर्चा की गई है। संस्कृत आलोचना ने आधुनिक भारतीय भाषाओं की आलोचना परंपराओं को न केवल प्रभावित किया है बल्कि उनकी अधिकांश अवधारणाएँ तथा शब्दावली संस्कृत आलोचना की परंपरा पर आधारित हैं।
कुछ अपवादों को छोड़ दे, तो संस्कृत आलोचना की चर्चा आधिकांशतः अमूर्त, गूढ़ तथा बोझिल भाषा में की गई है। प्रस्तुत पुस्तक संस्कृत आलोचना को सरल, संक्षिप्त, बोधगम्य एवं तर्कबद्ध रूप में प्रस्तुत करती है। साथ ही यह गंभीर तुलनात्मक अध्ययन के प्रारूपों को भी सुझाती है।
कुछ अपवादों को छोड़ दे, तो संस्कृत आलोचना की चर्चा आधिकांशतः अमूर्त, गूढ़ तथा बोझिल भाषा में की गई है। प्रस्तुत पुस्तक संस्कृत आलोचना को सरल, संक्षिप्त, बोधगम्य एवं तर्कबद्ध रूप में प्रस्तुत करती है। साथ ही यह गंभीर तुलनात्मक अध्ययन के प्रारूपों को भी सुझाती है।
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