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देखणी
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प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2017 |
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 10282
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आईएसबीएन :9788126729906 |
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इस संग्रह में एक वरदान माँगा गया है : कि जि़न्दगी का रमणीय सतरंगी बुलबुला व्यर्थ न हो, कि दरख्तों से झाँकता रोशन सूर्य अस्त न हो, विनाश तत्त्व के झपट्टे में भी भूमिकी उग्रगन्धी धूल गमकती रहे और जीने का समृद्ध कबाड़ पूरे घर भर में जमा होता रहे। इन सभी सचेतन बिम्बों में जिजीविषा का स्रोत उफन-उफनकर बहता है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
इस संग्रह में एक वरदान माँगा गया है : कि जि़न्दगी का रमणीय सतरंगी बुलबुला व्यर्थ न हो, कि दरख्तों से झाँकता रोशन सूर्य अस्त न हो, विनाश तत्त्व के झपट्टे में भी भूमिकी उग्रगन्धी धूल गमकती रहे और जीने का समृद्ध कबाड़ पूरे घर भर में जमा होता रहे। इन सभी सचेतन बिम्बों में जिजीविषा का स्रोत उफन-उफनकर बहता है। यह प्रवृत्ति महानगरीय कविता की मृत्युग्रस्त प्रवृत्ति पर चोट है। मृत्यु के प्रति एक सचेत एहसास के कारण जीवन के प्रति इसकी निष्ठा खोखली नहीं है, उसमें एक दृढ़ता है। इस तरह हमेशा अच्छी ज़िन्दगी पर मृत्यु का अंकुश तना होता है। इसलिए नेमाड़ेजी की कविता मृत्यु के एहसास से ध्वनित विनाश तत्त्व को अनदेखा कर कोरे आशावाद की तरफ नहीं झुकती। वह महानगरीय कविता की तरह मृत्यु की प्रभुसत्ता को तटस्थता से स्वीकार नहीं करती, बल्कि इस प्रभुसत्ता को चुनौती देनेवाले जीवनदायी प्रेरणाओं के संदर्भ मजबूती से खड़ी करती है। इस विनाश तत्त्व को मात देता जीवन के प्रति अदम्य उत्साह और उससे स्वभावतः प्राप्त जुझारूपन नेमाड़ेजी का स्थायी भाव है। उनकी इसी विलक्षण जीवन-दृष्टि का दर्शन उनकी कविताओं में भी होता है।
- प्रकाश देशपांडे केजकर
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