आलोचना >> समय और साहित्य समय और साहित्यविजयमोहन सिंह
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विजयमोहन सिंह हमारे समय के सजग कथाकार और आलोचक हैं; इस पुस्तक में उनकी उन गद्य रचनाओं को शामिल किया गया है जो बीच-बीच में उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं और संगोष्ठी-सेमिनारों आदि के लिए लिखीं।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
समय और साहित्य हर लेखक अपनी रचनात्मकता, अपनी समझ और अपनी सहमति-असहमति के माध्यम से अपने समय के साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक प्रवाह में हस्तक्षेप भी करता है। रचनाकार किसी भी विधा का हो, उसका यह पक्ष अपने दौर में उसकी स्थिति को समझाने-रेखांकित करने में सहायक होता है। विजयमोहन सिंह हमारे समय के सजग कथाकार और आलोचक हैं; इस पुस्तक में उनकी उन गद्य रचनाओं को शामिल किया गया है जो बीच-बीच में उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं और संगोष्ठी-सेमिनारों आदि के लिए लिखीं। इनमें कुछ निबन्ध हैं, कुछ पुस्तक समीक्षाएँ हैं, कुछ समसामयिक विषयों पर टिप्पणियाँ हैं; और कुछ श्रद्धांजलियाँ भी। ऐसा करने के पीछे एक उद्देश्य यह भी रहा है कि सामान्य साहित्यिक संकलनों की तरह यह पुस्तक एकरस न लगे। विजयमोहन सिंह के वैचारिक लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अतिरिक्त और ओढ़ी हुई गम्भीरता से पाठक को आतंकित नहीं करते। वे अपना मन्तव्य सहज भाव से व्यक्त करते हैं, लेकिन बहुत ‘कन्विंसिंग’ ढंग से। बकौल उनके, ‘‘ये अपने समय तथा साहित्य के प्रति प्रतिक्रियाएँ हैं।’’
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