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अपभ्रंश भाषा और साहित्य

राजमणि शर्मा

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :199
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 10391
आईएसबीएन :9789326354288

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अपभ्रंश को आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के जननी कहा गया है

अपभ्रंश भाषा और साहित्य

अपभ्रंश को आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की जननी कहा गया है। भारतीय इतिहास में यह एकमात्र भाषा ही नहीं, अपितु एक ऐसा सहज एवं गतिशील जन आन्दोलन है जो किसी का संस्कार या वरदहस्त पाये बिना लगभग हजार वर्ष तक समस्त भारत को झंकृत करता रहा ओर हर आधुनिक भारतीय भाषा को नया रूप आकार देते हुए उसे संवर्द्धित करता रहा।

अपभ्रंश तथा परवर्ती अपभ्रंश भाषा के नये पहलुओं की खोज, सहज विश्लेषण, नाथ ओर सिद्ध साहित्य, राम-कृष्ण-काव्य, चरित-काव्य, प्रेमाख्यान/रहस्यवाद, श्रृंगार, वीर काव्य जैसी विधाओं तथा महाकाव्य, खंडकाव्य, मुक्तक आदि काव्य-रूपों का विस्तृत विवेचन, साहित्य-समीक्षा के लिए नये मानदंडों की स्थापना एवं 'कीर्तिलता' के पाठ, अर्थ और भाषा की समस्या पर विभिन्न कोणों से किया गया परामर्श-सब मिल कर राजमणि शर्मा की यह पुस्तक भाषा के क्षेत्र में एक बड़े उद्देश्य की पूर्ति करती है।

अपभ्रंश और हिन्दी भाषा साहित्य के अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी कृति।

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