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कविता संग्रह >> अपने ही होने पर

अपने ही होने पर

विंदा करंदीकर

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10401
आईएसबीएन :8126312645

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विंदा ताजगी और नवीनता से भरे हैं, प्रयोग की बैचेनी उनमें इस कदर है कि हर नया संग्रह दुसरे से अलग दिखाई देता है

विंदा ताजगी और नवीनता से भरे हैं, प्रयोग की बैचेनी उनमें इस कदर है कि हर नया संग्रह दुसरे से अलग दिखाई देता है न सिर्फ शिल्प में, वस्तु में भी. श्री करंदीकर कि प्रेम कविताओं में जो विविधता है वह सिर्फ शैली कि नवीनता नहीं बल्कि अनुभूतियों कि तीव्रता उनके भीतर समुद्र कि लहरों जैसी आवेग से भरी है. कथ्य कि विविधता में उनकी बालकाविताओं का योगदान भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है. वे छोटी छोटी कविताएँ अत्यन्त प्रभावशाली हैं. सुयोग्य अनुवादकों ने मूल कविताओं का स्वाद अनुवाद में भी बनाये रखने कि कोशिश कि है.

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