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अनहद
अनहद
प्रकाशक :
भारतीय ज्ञानपीठ |
प्रकाशित वर्ष : 2008 |
पृष्ठ :222
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 10409
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आईएसबीएन :9788126315192 |
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अपने देश में वैदिक युग से लेकर अब तक जो कुछ रचा गया है, उस ज्ञानराशी का क्षेत्र भी कुछ कम नहीं. अतुलनीय है वह ---
अपने देश में वैदिक युग से लेकर अब तक जो कुछ रचा गया है, उस ज्ञानराशी का क्षेत्र भी कुछ कम नहीं. अतुलनीय है वह --- अत्यधिक व्यापक. ऋषिप्रज्ञा द्वारा प्रस्तावित चार महावाक्यों का ही खुलासा करने बैठें तो पाएँगे कि हम सबकी समझ कितनी बौनी है. अस्तु, 'अनहद' में चिन्तक कवि ने वैदिक युग से लेकर अब तक की अनेक स्थापनाओं और उनसे उद्भूत प्रपत्तियों को अपनी समझ के सहारे प्रस्तुत किया है.
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