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मराल

कुबेरनाथ राय

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10446
आईएसबीएन :8126308583

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नीलकण्ठ की नगरी वाराणसी और प्राग्-भारती का प्रभामय प्रांगण कामरूप--दोनों श्री कुबेरनाथ राय की सारस्वत आराधना के केन्द्र रहे हैं.

नीलकण्ठ की नगरी वाराणसी और प्राग्-भारती का प्रभामय प्रांगण कामरूप--दोनों श्री कुबेरनाथ राय की सारस्वत आराधना के केन्द्र रहे हैं. प्रकृति से रसदृष्टा होने के नाते उन्होंने प्राचीन भारतीय वाड्.मय से रसात्मक अनुभूति का संबल लेकर कीचड़ में कमल, देह-वृन्दावन में वंशीधुन, वैदिक ऋचा में परम व्योम की हंसपदी और ऋतुराज में मधुर रसराज का लास्य देखने का कलात्मक प्रयास किया है. 'मरल' इन्हीं अनुभूतियों का रस-कलश है. यह उनके ललित-निबन्धों का पन्द्रहवाँ संकलन है.

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